मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

ये भूत तो झाड़ू से ही भागेगा साहब, बंदूक से नहीं

मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का सपना देखने वाले दिल्ली में आप की सरकार बनने के बाद एकदम अधीर हो गए हैं। एकाएक उन्हें लगने लगा है कि मोदी की दाल में केजरीवाल की मक्खी ने सारा खेल खराब कर दिया है। सच भी है, मीडिया का हाल देखिए। पूरा माहौल बदल गया है। लेकिन, राजनीति का हाल  भी क्रिकेट की तरह ही है। अंतिम बॉल तक हार-जीत बाकी रहती है। हां, ये ज़रूर है कि अंतिम बॉल पर हार के जबड़े से जीत खींचने वाली टीमें कम से कम वैसा बदहवास नहीं होतीं, जैसे नितिन गडकरी टाइप के लोग हो रहे हैं।

केजरीवाल के दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही गडकरी ने जिस तरह के बयानों का सिलसिला शुरू किया है, उससे मुझे शक होने लगा है कि उन्होंने मोदी की नैया डुबाने के लिए नई रणनीति तैयार कर ली है। अगर ऐसा नहीं है, तो इसका दूसरा मतलब यह है कि देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी का पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एक राजनीतिक नौसिखुआ है, जो अपने ही गोलपोस्ट में गोल करने पर आमादा है। गडकरी लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि एक उद्योगपति ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच समझौता करा दिया है। यह आरोप सच है या झूठ, पता नहीं- लेकिन मूर्खतापूर्ण और राजनीतिक आत्मघात का एक नमूना है, इसमें कोई दो मत नहीं। 

केजरीवाल भ्रष्ट हैं – यह उनको वोट देने वाली 25 लाख जनता इसलिए नहीं मान लेगी कि ऐसा नितिन गडकरी कह रहे हैं। और न ही पूरे देश में केजरीवाल को लेकर पैदा हुई जिज्ञासा इससे शांत हो जाएगी। उलटा होगा यह कि आप को वोट देने वाले ऐसे लाखों मतदाता जो अब तक विधानसभा में केजरी, लोकसभा मे मोदी का नारा लगाते रहे हैं, पूरी तरह केजरीवाल के पीछे लामबंद हो जाएंगे। मोदी का विरोध करने वाले, चाहे वे वामपंथी हों या मुसलमान- उन्हें केजरीवाल के रूप में एक सशक्त विकल्प मिला है, जिसके पीछे अपनी पूरी ताकत लगाकर वे मोदी को रोकना चाहेंगे। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को अपनी रणनीति उन मतदाताओं पर केंद्रित करनी चाहिए, जिनके लिए केजरीवाल मोदी के विरोध का जरिया मात्र नहीं, बल्कि एक नई राजनीति की उम्मीद हैं। 

ऐसे मतदाताओं को यह समझाया जा सकता है कि केजरीवाल को लोकसभा में वोट देना परोक्ष रूप से सोनिया गांधी, मुलायम, लालू जैसी ताकतों को मजबूत करने जैसा ही है। देश के युवा मतदाताओं को मोदी के लिए खड़ा करने की रणनीति उस तरह की नकारात्मक प्रोपगैंडिस्ट राजनीति से नहीं तैयार हो सकती, जो गडकरी कर रहे हैं। हो सकता है वह केजरीवाल से अपनी निजी दुश्मनी निकाल रहे हों क्योंकि उनकी कंपनी पूर्ति में घोटाले की खबरें उछाल कर केजरीवाल ने दरअसल दूसरी बार उनके पार्टी अध्यक्ष बनने की संभावनाओं में पलीता लगा दिया था। लेकिन ऐसा कर के दरअसल वह मोदी की संभावनाओं में पलीता लगा रहे हैं और केजरीवाल के पक्ष में उस समूह की लामबंदी का रास्ता भी तैयार कर रहे हैं, जो कम से कम अभी तक मोदी या केजरीवाल की उधेड़बुन में फंसा हुआ है। 

गडकरी हों या मोदी, उन्हें समझना होगा कि केजरीवाल के भंवर जाल से निकलने के लिए सकारात्मक राजनीति की जरूरत है, क्योंकि केजरीवाल की राजनीतिक पैदाइश ही उस नकारात्मक राजनीतिक की देन है, जो अब तक देश में होती रही है। अरविंद केजरीवाल गैर पारंपरिक राजनीति के धुरंधर हैं, उन्हें गैर पारंपरिक राजनीति से ही शिकस्त दी जा सकती है, न कि थके हुए और सड़ांध मारते राजनीतिक हथकंडों से। बाकी काम तो उनके वादे खुद ही कर देंगे। आप का भूत झाड़ने के लिए झाड़ू ही चलाना होगा, बंदूक से काम नहीं चलने वाला।

सोमवार, 30 दिसंबर 2013

थके-हारे वामपंथ की आखिरी उम्मीद हैं केजरीवाल

आम आदमी पार्टी की दिल्ली में जीत के बाद राजनीति में बदलाव की चर्चा अपने चरम पर पहुंच चुकी है। चर्चा पहले भी हो रही थी, लेकिन उसमें कुतूहल था, उम्मीद की बातें थीं और एक सकारात्मकता (पॉजिटिविटी) थी। मगर अब इस चर्चा ने अपना रूप बदल लिया है। सोशल मीडिया हो या सोशल गॉसिपिंग – अब चर्चा का माहौल गरम है। सकारात्मकतका की जगह नकारात्मकता ने ले ली है। जो समर्थक हैं वे अपने इरादों, नीयत और निष्ठा की बात कम और विरोधियों के इरादों तथा नीयत की बात ज्यादा कर रहे हैं। जो विरोधी हैं, वे तल्ख हो चुके हैं और ईमानदार पार्टी की नैतिकता में किसी भी छेद को नज़रअंदाज करने के मूड में नहीं हैं। आखिर ये बदलाव हुआ क्यों है और इसके राजनीतिक मायने क्या हैं?

दरअसल इसे समझने के लिए आप के राजनीतिक समर्थकों और विरोधियों को समझना होगा। आप ने भ्रष्टाचार उन्मूलन को अपना मुख्य राजनीतिक नारा बनाया और यही उसकी विचारधारा भी बनी। अब भ्रष्टाचार के विरोध से भला किसे विरोध हो सकता है। तो, एक तरह से देखा जाए तो दिल्ली चुनाव के परिणाम आने से पहले आप के विरोधियों की लिस्ट खाली और निस्तेज सी थी। कांग्रेस और भाजपा से जुड़े लोग, जिनकी सत्ता में सीधी हिस्सेदारी की संभावना आप के कारण धूमिल हो रही थी, केवल वही आप का तीव्र विरोध कर रहे थे। लेकिन आम लोग, चाहे वे कांग्रेसी हों, दक्षिणपंथी हों या फिर वामपंथी- आप के मौन और मुखर समर्थन में थे। तो विरोध कहीं बहुत तल्ख और गर्म स्वरूप में हमारे सामने था ही नहीं। स्वयं आप के आंतरिक सर्वे में कहा गया कि उसके 31 फीसदी समर्थक नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते हैं। एक सामान्य समझ यही बनी कि आप के युवा समर्थक विधानसभा में केजरीवाल और लोकसभा में मोदी के झंडाबरदार बनेंगे। तो स्वाभाविक तौर पर मोदी के दक्षिणपंथी समर्थकों ने बढ़चढ़ कर अपना समर्थन जताया। 

दूसरी ओर, वामपंथियों को पहली बार लगा कि गैर कांग्रेसी, गैर भाजपाई कोई ऐसी धारा इस देश में खड़ी की जा सकती है, जिसे जनता का समर्थन मिल रहा है। ऐसे में उन्होंने भी अपना पूरा जोर केजरीवाल के पक्ष में लगाया। लेकिन चुनाव परिणाम आते ही स्थितियां कुछ बदल सी गईं।

चुनाव परिणाम आने के साथ ही केजरीवाल के दक्षिणपंथी समर्थक सकते में आ गए। उन्हें लगा कि केजरीवाल के साए ने मोदी को अपनी परछाईं में समेट लिया है। कल तक जो लोग केजरीवाल को केवल दिल्ली विधानसभा की घटना मान रहे थे, उन्हें लगने लगा कि अब यह घटना मिशन मोदी की राह में आने लगी है। वे तिलमिलाए और उन्होंने केजरीवाल की आलोचनात्मक समीक्षा शुरू कर दी। दूसरी ओर, इसी संकेत ने वामपंथियों में नई जान फूंक दी। पश्चिम बंगाल से भी उखड़ने के बाद वामपंथ भारत में वैसे ही कैंसर रोग का मरीज बना हुआ है। सबसे आशावादी वामपंथी में देश में चुनावी सफलता पाने का सपना नहीं देखता और इसीलिए वामपंथ की पूरी राजनीतिक रणनीति केवल कांग्रेस, लालू जैसी ताकतों के साथ चिपक कर खुद को प्रासंगिक बनाए रखने तक सीमित रही है। 

उनका राजनीतिक दर्शन केवल और केवल भारतीय जनता पार्टी को रोकना है और 2 महीने पहले तक मोदी के सामने वे पस्त हो चुके थे। धूलधूसरित कांग्रेस से उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी और इसलिए मोदी को रोकने के लिए वे किसी चमत्कार की ही उम्मीद कर सकते थे। अरविंद केजरीवाल वही चमत्कार बनकर उनके सामने आए हैं। वामपंथियों को एकाएक फिर यह उम्मीद जग गई है कि मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोका जा सकता है। और इसलिए दक्षिणपंथियों की हर आलोचना, हर  समीक्षा पर वे टूट पड़ रहे हैं। तो स्वाभाविक है कि यह चर्चा गर्म और तल्ख हो गई है। लोकसभा चुनावों तक इसमें नरमी आने की संभावना भी नहीं है।