बुधवार, 25 नवंबर 2009

लिब्रहान साहब की रिपोर्ट का इंतजार अब भी जारी है

तीन दिनों से हर तरफ लिब्रहान साहब छाए हुए हैं। स्वाभाविक भी है। 17 साल की मेहनत, करीब 4 दर्जन बार का एक्सटेंशन और करोड़ों रुपए की रकम लगाने के बाद आखिरकार उन्होंने इतना बड़ा खुलासा किया है कि बाबरी ढांचे का विध्वंस कोई औचक घटना नहीं थी, बल्कि आरएसएस ने बहुत सावधानी से पहले ही इसकी योजना बना ली थी। उन्होंने यह भी बताया है कि अटल बिहारी वाजपेयी साम्प्रदायिक संघ परिवार के उदारवादी चेहरा मात्र थे।

लिब्रहान महोदय मुस्लिम संगठनों से भी नाराज हैं कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई, यह अलग बात है कि उन संगठनों को उन्होंने कभी गवाही के लिए बुलाया ही नहीं। कल्याण सिंह से वह बहुत नाराज हैं कि उन्होंने पूरा तंत्र पंगु बना दिया। यह अलग बात है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव के बारे में उनका मानना है कि उन बेचारे को राज्यपाल की रिपोर्ट ही नहीं मिली, इसलिए उनका कुछ न करना पूरी तरह उचित है।

है न कमाल की बात। जिस बात को पूरा देश देख रहा था, समझ रहा था, उस पर कार्रवाई के लिए प्रधानमंत्री को राज्यपाल की रिपोर्ट की दरकार थी। लिब्रहान साहब ने एक-दो बातें और दिलचस्प कही हैं। जैसे, उन्होंने कहा है कि संघ परिवार ने अपने जिन साम्प्रदायिक तत्वों को भारतीय प्रशासनिक तंत्र में घुसा दिया है, वह अब भी देश के विभिन्न हिस्सों में फल-फूल रहे हैं।

तीन दिन से ये सारी खबरें मीडिया में गूंज रही हैं। अच्छा भी है, देशहित में खोली गई इन खुफिया सूचनाओं को आखिर अंतिम पंक्ति में बैठे देशवासी तक तो पहुंचना ही चाहिए। मुझे परेशानी केवल एक बात से हो रही है, कि कहीं भी अब तक इन निष्कर्षों का आधार नहीं बताया जा रहा है। वे कौन से तथ्य हैं, किनकी गवाहियां हैं, जिनके आधार पर लिब्रहान साहब ने ये सारे निष्कर्ष निकाले हैं। क्योंकि अब तक जितनी बातें मीडिया में आई हैं, उनमें मुझे रिपोर्ट कम और संपादकीय ज्यादा नजर आ रहा है।

जिनती बातें लिब्रहान साहब के हवाले से कही जा रही हैं, वे हम पिछले 17 वर्षों से लालू जी, मुलायम जी, सीताराम येचुरी जी, अर्जुन सिंह जी और देश के तमाम स्वनामधन्य सेकुलरों से सुनते ही आ रहे हैं। तो 17 वर्षों की जांच का सबब क्या है? जरूर होगा। परसों लिब्रहान महोदय ने नाराज होकर कहा कि वे ऐसे चरित्रहीन नहीं हैं कि रिपोर्ट मीडिया में लीक करें। यानी स्वाभाविक तौर पर यह भी माना चाहिए कि पूर्व न्यायाधीश रहे चुके और एक सदस्यीय आयोग के सर्वेसर्वा लिब्रहान महोदय ने
जो कुछ भी अपनी रिपोर्ट में लिखा है, वह ठोस सबूतों के आधार पर ही कहा जा रहा होगा, न कि अपने व्यक्तिगत विचार और आग्रह के आधार पर।

अब क्योंकि रिपोर्ट संसद के पटल पर रखी जा चुकी है, तो उम्मीद है संपादकीय के पीछे की मजबूत नींव, यानी तथ्य भी धीरे-धीरे मीडिया में आएंगे।