सोमवार, 17 जनवरी 2011

जंगपुरा और पुष्प विहार में अंतर के नतीजों से डरिए

12 जनवरी, दिन बुधवार। दिल्ली के दो अलग-अलग हिस्सों में दो अवैध पूजा स्थलों को ढहाया गया। जंगपुरा में एक मस्जिद ज़मींदोज की गई और पुष्प विहार में एक मंदिर गिराया गया। लेकिन हमारे समाज और राजनीति पर इन दोनों घटनाओं के असर में फ़र्क था। आइए, इसके बाद हुई घटनाओं की कड़ी से इस अंतर को देखा जाए।

अगले दिन यानी 13 जनवरी को राजधानी के लगभग तमाम अखबारों में मस्जिद गिराए जाने की ख़बर पहले पेज पर थी। होना लाज़िमी भी था। सुबह 6 से 9.30 बजे तक मस्जिद गिरी और 11.30 बजे जामा मस्जिद के शाही इमाम वहां पहुंच गए। हज़ार से ज़्यादा की संख्या में मुस्लिम वहां इकट्ठे हो गए। स्थानीय विधायक (जो कि एक ग़ैर मुस्लिम हैं) अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ मुसलमानों के ख़िलाफ हुए इस अत्याचार पर आवाज़ बुलंद करने वहां पहुंच गए। दो और विधायक, मटिया महल के शोएब इक़बाल और ओखला के आसिफ़ मोहम्मद ख़ान वहां आ गए। ज़ाहिर है, वह जनप्रतिनिधि होने के नाते नहीं, बल्कि मुसलमान होने के नाते अपना फर्ज़ अदा करने पहुंचे थे। बात यहीं नहीं थमी।

मस्जिद ढहने के बाद की पहली नमाज पास के थाने में पढ़ी गई। बाद के नमाज के लिए हज़ारों मुसलमान गिराई गई मस्जिद की जगह की ज़िद करने लगे, जो कि उन्हें बाद में दे दी गई। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और अपने नाम के आगे मुल्ला जुड़वाने के शौक़ीन मुलायम सिंह यादव ने उसी दिन घटनास्थल पर पहुंच कर घोषणा की कि यह मुसलमानों पर ज़ुल्म है। दिल्ली की मुख्यमंत्री कैसे पीछे रहतीं? वह भी भागी-भागी पहुंची। अल्पसंख्यकों के साथ हुए इस अत्याचार पर आंसू बहाया। फिर अगले दिन शाही इमाम के दरवाज़े पर मत्था टेकने जामा मस्जिद पहुंचीं। आधे घंटे की बैठक के बाद शाही इमान ने सच्चे देशभक्त की तरह मुसलमानों से शांति बरतने की अपील की और उन्हें बताया कि मस्जिद फिर वहीं बनेगी।

शीला जी ने उनसे वादा किया है कि पहले जिस ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा कर मस्जिद बनाई गई थी, उसे अब सरकार अपने खर्चे से (मतलब आम लोगों के खर्चे से) ख़रीद कर वक्फ़ बोर्ड को सौंपेगी। नतीजा- घटनास्थल पर मौजूद मुस्लिम श्रद्धालुओं ने डीडीए द्वारा बनाई गई चहारदिवारी ढाह दी और घटनास्थल पर एक अस्थाई मस्जिद बना दी गई। 12 जनवरी को मस्जिद तोड़े जाने के बाद से अब तक वहां हज़ारों मुसलमान मौजूद हैं और हर समय की नमाज मिलकर अदा कर रहे हैं।

अब दूसरी घटना। पुष्प विहार का मंदिर गिराए जाने के बाद न कोई पत्ता हिला, न कंकड़ गिरा। एक अवैध इमारत को ढहाने की घटना को वहां के पूरे हिंदू समाज ने सहर्ष स्वीकार किया। नतीजतन, अखबार और टीवी के लिहाज से कोई ख़बर ही नहीं बनी। लेकिन जंगपुरा में हो रहा खेल जब अखबारों की सुर्खियां बन रहा हो, तो स्वाभाविक तौर पर राहुल गांधी के शब्दों में लश्कर-ए-तोएबा से भी ख़तरनाक कट्टर हिंदुओं पर कुछ करने का दबाव तो बना ही होगा। तो फिर शनिवार को पुष्प विहार में सड़कों पर जाम लगा। बीआरटी भी जाम की गई।

रविवार को इंडियन एक्सप्रेस ने पांचवें पन्ने पर दो कॉलम में यह ख़बर लगाई, तो मुझे भी पहली बार पता चला कि पुष्प विहार में चार दिन पहले कोई मंदिर भी तोड़ा गया था। लेकिन इस खबर में एक ख़ास बात थी। जंगपुरा में इकट्ठा होने वाले, विरोध करने वाले और नारे लगाने वाले मुसलमान थे। पुष्प विहार मंदिर के लिए जमा होने वाले भाजपाई थे, विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस वाले थे। वहां कोई हिंदू नहीं था। जंगपुरा की जंग मुसलमानों की जंग है, लेकिन पुष्प विहार का विरोध भाजपाइयों और संघियों का पार्टी कार्यक्रम है।

हिंदुओं का न कोई सेकुलर शाही इमाम है, न कोई स्थानीय विधायक, न शोएब इक़बाल हैं, न आसिफ़ मोहम्मद ख़ान। न ही बगल के राज्य से भागा-भागा आने वाला कोई मुल्ला मुलायम है और न ही राज्य की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित। हिंदुओं के लिए खड़े होने वाले केवल वही मुट्ठी भर लोग हैं, जो चिदंबरम जी और दिग्विजय सिंह की नज़र में हिंदू आतंकवादी हैं और राहुल गांधी की नज़र में पाकिस्तान की सेना से संचालित होने वाले लश्कर से भी ख़तरनाक हैं।

क्योकि इस देश के कम्युनिस्टों की आंखों पर तो हिंदू विरोध का पट्टी पड़ी है, इसलिए उनसे जागने की उम्मीद व्यर्थ है। लेकिन इन मुट्ठी भर बौद्धिक विकलांगों के अलावा जो देश की 98 फीसदी से ज्यादा आबादी है, उससे ज़रूर इस तरह की घटनाओं के निहितार्थ समझने की उम्मीद की जा सकती है। इस देश का मुसलमान देशभक्त है और मुख्यधारा के साथ चलना चाहता है, लेकिन इमाम, इक़बाल, ख़ान, मुलायम और शीला जैसों की दुकानदारी चलते रहने के लिए ज़रूरी है कि वह कूपमंडुक बना रहे और पूरे देश में उसकी छवि कट्टरपंथी और कानून के दुश्मन की बने। क्योंकि अगर ऐसा होगा, तभी बहुसंख्यक हिंदुओं के भीतर उसकी प्रतिक्रिया होगी, सुनील जोशी और असीमानंद जैसे नाम पैदा होंगे (यह मानते हुए कि वह दोषी हैं) और जब ऐसा होगा, तभी फिर उन्हें हिंदुओं का भय दिखा कर अपनी दावत चलती रहेगी।

अगर किसी को इस सिद्धांत में कोई अतिशयोक्ति दिखती हो, तो वह अपने दो बच्चों या घर के दो सदस्यों के बीच यही प्रयोग(जंगपुरा और पुष्प विहार के अंतर का) दुहरा कर देख ले। वे तमाम हिंदू, जिन्हें बम विस्फोटों के मामलों में आरोपी बनाया गया है, एक ही गुट के हैं। मतलब अगर ये सारे आरोप सही भी हैं, तो ये हिंदू समाज के स्वभाव में आ रहे किसी बदलाव का संकेत नहीं करते। लेकिन कल्पना कीजिए, अगर वास्तव में चिदंबरम, दिग्विजय और राहुल गांधी की राजनीतिक बयानबाजी सच साबित हो जाए, तो भारत को पाकिस्तान बनने में कितना समय लगेगा, जहां अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक कानून का विरोध करने वाले (न कि उन्हें विशेष सुविधाएं देने की मांग करने वाले) गवर्नर की हत्या करने वाले पर फूल बरसाने वालों में पुलिसवाले और वकील तक शामिल थे।

इसलिए अगर आप इस देश के मुसलमानों के हितचिंतक हैं, तो जंगपुरा और पुष्प विहार का अंतर ख़त्म किए जाने के लिए आवाज़ उठाइए। लेकिन अगर आपको केवल राजनीति करनी है, तो कीजिए, लेकिन फिर इस ग़लतफ़हमी में मत रहिए कि इस आग की लपटों से आपका घर और आपके बच्चे बच जाएंगे।