भारत में लगातार हो रही आतंकवादी घटनाएं, इनमें स्थानीय मुसलमानों की बढ़ती भूमिका, साथ ही साथ इस्लामी आतंकवाद के विरोध में मुखर होता मुसलमानों का एक तबका। इन तीनों घटनाओं के बीच एक आम भारतीय मुसलमान का खुद को आतंकवादी कहे और समझे जाने का दर्द। गड़बड़ कहां है? इसे समझे बिना नतीजे पर तो पहुंचा नहीं जा सकता। तो आइए समझने की कोशिश करते हैं।
वामपंथियों, सेकुलरों और मुसलमानों की नजर में भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन राष्ट्रवाद। और राष्ट्रवाद का प्रतिनिधि संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस)। दूसरा पक्ष, सेकुलरों के सबसे बड़े प्रतिनिधि लालू यादव और मुलायम यादव और मुसलमानों का सबसे पड़ा पंथिक नेता अब्दुल्ला बुखारी। आरएसएस कहता है कि इस देश के 98 फीसदी मुसलमानों की मूल भूमि भारतवर्ष है इसलिए इन सभी की संस्कृति राम और कृष्ण की संस्कृति है। मक्का, मुहम्मद और कुरान मुसलमानों का धर्म हो सकते हैं, लेकिन उनकी संस्कृति आर्य संस्कृति है। इस ढांचे को समझने-समझाने के लिए वह इंडोनेशिया का उदाहरण देता है जो इस्लामिक देश है, लेकिन जहां का सबसे बड़ा सामाजिक आयोजन रामलीला होती है, जहां का राष्ट्रीय एयरलाइन 'गरुड़' है और जहां के मुसलमान का नाम मेगावती सुकर्णोपुत्री जैसा होता है। तो आरएसएस की
नजर में हिंदू राष्ट्रवाद और इस्लाम का आपस में कोई विरोध नहीं है। अपनी इसी सोच के कारण संघ ने राष्ट्रवादी मुसलमानों के संगठन की कोशिशें भी शुरू कर दी हैं और इसके लिए एक प्रचारक इंद्रेश को बाकायदा जिम्मेदारी भी सौंपी गई है।
और आइए अब देखते हैं कि दूसरे पक्ष के प्रतिनिधि लालू, मुलायम और बुखारी क्या कहते हैं? लालू और मुलायम घोषित और सिद्ध आतंकवादी संगठन सिमी पर प्रतिबंध का विरोध कर रहे हैं। और बुखारी? अहमदाबाद बम विस्फोट के मास्टर माइंड बशीर के पिता को सांत्वना देने गए बुखारी साहब कहते हैं कि बशीर के इस बलिदान से कौम की सलाहियत होगी। (इंडियन एक्सप्रेस, फ्रंट पेज, 22 अगस्त)। समझने की बात यही है और गड़बड़ भी यहीं है। लालू, मुलायम और बुखारी ने मुसलमान समाज के प्रति अपनी राय साफ कर दी है। उन्हें लगता है कि देश का हर मुसलमान या तो आतंकवादी है या आतंकवाद का समर्थक है, पाकिस्तान का हामी है।
दृश्य अब कुछ साफ लग रहा है। एक ओर राष्ट्रवाद और दूसरी ओर आतंकवाद। राष्ट्रवाद की धारा कह रही है कि मुसलमान राष्ट्रवादी है और उसे मिलकर आतंकवाद को कुचल देना चाहिए। आतंकवाद कह रहा है कि मुसलमान आतंकवादी है और उसे राष्ट्रवाद को मटियामेट कर देना चाहिए। गेंद मुसलमानों के पाले में है। चुनाव मुसलमान का है। अगर इस देश का मुसलमान बशीर को कौम का शहीद मानने वाले और सिमी पर प्रतिबंध से अनिद्रा के शिकार हुए राष्ट्रद्रोहियों के साथ खड़ा होगा, तो फिर खुद को संदेह की नजरों से देखे जाने का उसका दर्द ढकोसले से ज्यादा कुछ नहीं लगेगा।
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7 टिप्पणियां:
देश के मुसलमान इस मामले मे समझदारी दिखा सकते है. इन तीनो से नाता तोड कर.
संविधान के प्रिएम्बल से पंथनिरपेक्ष/सेकुलर शब्द हटा देना चाहिए। लोकतांत्रिक गणतंत्र अपने आप में पर्याप्त है। असल में सेकुलरवाद एक ढोंग है जिसके दम पर लोकतंत्रविरोधी ताकतें तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं। मुसलमानों को अपनी राष्ट्रभक्ति का प्रमाणपत्र किसी बीजेपी या संघ से लेने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें लोकतांत्रिक शक्तियों के साथ खड़े होकर पूरी कौम के विकास की लड़ाई लड़नी होगी।
यह इस देश के मुसलमानों का दुर्भाग्य है कि उन्हें हर कदम पर हर किसी के सामने स्वयं को निर्दोष साबित करना पडता है।
अनिल रधुराज से पूरी तरह सहमत हैं।
यह इस देश के मुसलमानों का दुर्भाग्य है कि उन्हें हर कदम पर हर किसी के सामने स्वयं को निर्दोष साबित करना पडता है।
kya hindu kya musalman ?
kya iss desh ke liye kewal ek hi kaum ne ladai ladi ?
is Desh ko Hindu Rashtra Ghosit Kar Dena Chahiye
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