भारतीय जनता पार्टी चुनाव क्या हारी, बेचारी हिंदुत्व पर तो मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा है। उसे समझ ही नहीं आ रहा है कि उसका दोष क्या है। उसकी हालत उत्तर प्रदेश या बिहार में आए दिन होने वाली उन घटनाओं से समझा जा सकता है, जिनमें किसी एक दबंग जाति के कुछ 'जांबाज़ मर्द' इसलिए किसी दलित अबला को नंगा कर गांव में घुमाते हैं, क्योंकि उनके घर का कोई लड़का ज्यादा दारू पीने से बीमार हो गया। बेचारी वह दलित स्त्री अपनी झोपड़ी में पड़ी होती है या फिर किसी के खेत में मजदूरी कर रही होती है कि तभी उन जांबाज़ मर्दों की टोली आती है, उस पर डायन होने का आरोप लगाती है और इससे पहले कि वह कुछ समझ पाए, उसके कपड़े फाड़ कर उसे गांव भर में घुमाती है। वो तो उसे क़यामत के उन सदियों से लंबे घंटों के बीतने के बाद पता चलता है कि दरअसल उसे इसलिए डायन क़रार दिया गया कि वह बाबू साहब के घर के सामने से निकली थी और उसी के बाद उनके दारूबाज बेटे को खून की उलटियां होने लगीं थीं।
भाजपा की हार के बाद बेचारी हिंदुत्व की हालत भी उसी दलित बेसहारा स्त्री की सी हो रही है। हिंदुत्व बेचारी को तो भाजपा ने बहुत पहले, यानी जब अटल जी की 13 दिन की सरकार बनी थी, उस की पूर्व संध्या पर ही धकिया दिया था। वह तो बस अब अपने उन कुछ शुभचिंतकों की रूखी-सूखी रोटियां खाकर अपनी ज़िंदगी निकाल रही थी, जिनके लिए वह कभी केवल सत्ता चढ़ने की सीढ़ियां नहीं रही। लेकिन अब उसके करीब 12 साल बाद एकाएक उसे अपने नाम का शोर सुनाई दे रहा है। कुछ 'जांबाज़ भाजपाई', जो कल तक सत्ता की कुंजी जानकर उसके दरवाजे पर मत्था टेकते थे, उसकी झोपड़ी के आगे उसे ललकार रहे हैं। उसे पार्टी की हार का दोषी बताया जा रहा है।
लगभग ढाई महीने के चुनाव अभियान में किसी भाजपाई नेता ने उसका नाम तक नहीं लिया। वरुण गांधी के मूर्खतापूर्ण एक बयान ने ज़रूर उसकी जगहंसाई कराई, लेकिन कहीं भी उसके सच्चे स्वरूप यानी हिंदू राष्ट्रवाद का नामलेवा नहीं था। पार्टी के पीएम इन वेटिंग की चुनावी रणनीति तय करने वाले सुधींद्र कुलकर्णी ने कमजोर पीएम के नारे को केन्द्रीय विषय बनाने के बाद बहुत बेशर्मी से हार के बाद यह सलाह दे डाली कि हिंदुत्व ने ही उनकी यह दुर्गति करा दी। पार्टी के अल्पसंख्यक कोटे से तमाम विशेष पद और जिम्मेदारियां हथियाने वाले और अपने संसदीय क्षेत्र में चौथे स्थान पर आने वाले मुख्तार अब्बास नकवी ने तो चुनाव परिणाम आने के अगले दिन ही घोषणा कर दी थी कि अब हिंदुत्व की राजनीति का अंत हो गया है। स्वप्न दास गुप्ता ने अपने एक लेख में हिंदुत्व के सर हार का ठीकरा फोड़ते हुए कहा कि भावनात्मक ज्वार के आधार पर लंबे समय की राजनीति नहीं की जा सकती।
इन सब दिग्गज रणनीतिकारों के बयानों से ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने यह चुनाव हिंदुत्व के केन्द्रीय मुद्दे पर ही लड़ा था। वरुण गांधी के जिस बयान पर सबसे ज्यादा वितंडा खड़ा किया गया और किया जा रहा है, हालांकि वह हिंदुत्व की राजनीति का आत्मघाती पक्ष है, लेकिन फिर भी भाजपा ने कौन सा उसका समर्थन कर दिया था और उसे अपना केन्द्रीय विषय बना लिया था। उसमें भी दो कदम आगे, तीन कदम पीछे का रणनीतिक खोखलापन ही दिखा। इसके अलावा हिंदू राष्ट्रवाद की दृष्टि से जो भी महत्वपूर्ण मुद्दे थे, उनमें से एक पर भी पार्टी ने ढाई महीने में एक क्षीण सा स्वर भी नहीं निकाला।
प्रधानमंत्री का देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक बताना, आम शेयरधारकों और जमाकर्ताओं की हिस्सेदारी वाले सरकारी बैंकों पर कर्ज देने के लिए मुसलमानों को आरक्षण देने का दबाव बनाना, सेना में मजहबी आधार पर गिनती कराना, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद बंगलादेशी घुसपैठियों को संरक्षण देने वाले आईएमडीटी एक्ट को बनाए रखना, सुप्रीम कोर्ट के ही आदेश का उल्लंघन कर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बरक़रार रखना, मदरसे के दकियानुसी और साम्प्रदायिक पाठ्यक्रम को सीबीएसई के समकक्ष मान्यता देना और ऐसे तमाम गंभीर और राष्ट्र विरोधी फैसले कांग्रेसी सरकार के नाम हैं। लेकिन आप सर्वे कर लीजिए, देश की कितनी फीसदी जनता को इन मुद्दों में से आधे की भी जानकारी है। ये हैं हिंदू राष्ट्रवाद के असल मुद्दे। क्या इनमें से कोई भी एक हममें से किसी ने भी चुनाव प्रचार के दौरान सुना। यहां तक कि वरुण गांधी के मूर्खतापूर्ण बयान के तुरंत बाद आंध्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष ने लगभग वैसा ही बयान दिया कि मुसलमानों के खिलाफ उठने वाली उंगली के बदले पूरा हाथ काट लिया जाएगा। मैं अपने अनुभव के आधार पर कहता हूं कि देश की 90 फीसदी से ज्यादा जनता को इस बयान का पता भी नहीं है, जबकि वरुण गांधी पर हुआ बवाल हम सब जानते हैं। क्या यह भाजपा की जिम्मेदारी नहीं थी कि इन मुद्दों से देश को अवगत कराएं।
'मजबूत नेतृत्व, निर्णायक सरकार' का ढोल पीटने वाली पार्टी अब हिंदुत्व पर लाल-पीला हो रही है। जैसे यह पूरा चुनाव हिंदुत्व के केन्द्रीय विषय पर ही लड़ा गया। ऐसे में हिंदुत्व सबसे निरीह और बेचारा दिख रहा है। देखें इसकी बेचारगी खत्म करने के लिए राष्ट्रवाद के किसी नायक के उभरने का इंतजार और कितना लंबा होगा?
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7 टिप्पणियां:
sahi baat kahi hai aapne...... ye log apni galtiya dekhne ke bajaye hinduo ko kos rahe hai...... jabki inke andar khud ladne ki aag khatam ho chuki hai.........
भाजपा देश को अवगत करवाये.....अरे भई पहले एन डी टी वी की टक्कर का अपना चैनल तो लाओ. यह सबसे बड़ी कमी है.
आप तो मीडिया में हैं, खुद ही सोचिये कि भाजपा की "सकारात्मक" बातें आज तक आपने कितनी छापी हैं? मीडिया तो भाजपा-संघ-हिन्दुत्व का विरोधी है ही यह साबित हो चुका है… अब सुना है कि VHP एक नया चैनल शुरु करने जा रही है… कुछ लोगों को अभी से मिर्ची लगने लगी है, कुछ ऊपर ही ऊपर इस विचार की हँसी उड़ा रहे हैं लेकिन वे भी जानते हैं कि एक बार "आस्था", "संस्कार" जैसा इस चैनल को भारत की हिन्दू धर्मप्राण जनता में जगह बनाने दो, फ़िर देखो कैसा बदलाव आयेगा… पहले चैनल शुरु तो हो… जब तक 3M (मुल्ला-मार्क्स-मिशनरी) के हाथों मीडिया बिका हुआ है, लोग भाजपा की नकारात्मक तस्वीर ही देखेंगे…
हिन्दू विरोधी होकर आपको क्या मिलता है
१) आप उच्च विचारधारा वाले हो जाते हैं
२) कांग्रेस आपको जय हो कहती है
३) मीडिया आपकी तारीफ करती है
४) समाज में आपको उच्च स्थान मिलता है
५) आपको कोई हिन्दू तालिबान नहीं कहता
हिन्दुओ को अफीम की गोली दी जा रही है. अफीमची हिन्दू इन्ही गोली को लेकर हिंदुत्व को गाली देरहे है. मीडिया इस अफीम की गोली का संवाहक है. देखना है जोर बाजुओ में कितना है?
बिलकुल सटीक विश्लेषण है | पिछले चुनाव मैं हिंदुत्व था ही नहीं, phir भी हिंदुत्व को ही गाली दी जा रही है | सत्य से मुह मोड़ कर ज्यादा दिन नहीं चला जा सकता, भा. ज. पा. यदि हुन्दुत्व रस्त्रवाद और विकाश पे नहीं लौटी तो इसका खामियाजा उसे ही भुगतना पड़ेगा |
प्रधानमंत्री का देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक बताना, आम शेयरधारकों और जमाकर्ताओं की हिस्सेदारी वाले सरकारी बैंकों पर कर्ज देने के लिए मुसलमानों को आरक्षण देने का दबाव बनाना
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