'पार्टी विद ए डिफरेंस' के भारतीय जनता पार्टी के दावे की हवा तो बहुत पहले निकल चुकी थी, अब कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े के इस्तीफे के बाद उसे अगर 'पार्टी विद एग ऑन इट्स फेस' (कालिख पुते चेहरे वाली पार्टी) कहा जाए, तो शायद ही कोई अतिशयोक्ति होगी। पब में लड़कियों को बाल पकड़ कर घसीटते हुए गुंडों का संरक्षण करने वाली कर्नाटक की भाजपा सरकार ने इस बार ईमानदारी को अपना निशाना बनाया है।
पिछले साल जब कच्चे लोहे के तस्कर और राज्य के मंत्री रेड्डी भाइयों की ओर से सरकार गिराने की धमकियों के बाद टेलीविजन चैनलों पर येद्दुरप्पा का आंसू बहाता चेहरा हमने देखा था, तो लगा था कि एक ईमानदार, शरीफ राजनेता रेड्डी भाइयों की राजनीति का शिकार हो रहा है। मुझे उस समय भी आश्चर्य हो रहा था कि क्यों भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व सरकार में मंत्री बनाए गए तीन तस्करों के आगे घुटने टेक रहा है। हो सकता है कि यही सरकार बचाने की कीमत रही हो, लेकिन अगर किसी भी कीमत पर सरकार बचाना ही राजनीति है, तो इस पार्टी के किसी भी नेता के मुंह से 'नैतिकता' और 'मूल्य' जैसे शब्द निकलते ही चार जूते लगाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश और लोकायुक्त हेगड़े ने इस्तीफा देते हुए जिन बातों का खुलासा किया है उसके बाद मुझे समझ में आ रहा है कि येद्दुरप्पा के आंसू दरअसल उनकी शराफत के नहीं, बल्कि उनकी नपुंसकता के आंसू थे। वे आंसू थे, जिंदगी भर के सपने यानी मुख्यमंत्री का पद छिनने के डर के। हेगड़े देश से विलुप्त होती उस दुर्लभ प्रजाति का हिस्सा हैं, जो ईमानदारी को अपना सर्वोच्च धर्म मानती है। उन्होंने रेड्डी भाइयों की तस्करी पर लगाम कस दिया था। कई भ्रष्ट वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने उनके डर से इस्तीफे दे दिए थे। उन्होंने जिन निष्ठावान और ईमानदार अधिकारियों की अपनी टीम बनाई थी, उनका कहना है कि तीन वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने कभी किसी जांच में हस्तक्षेप नहीं किया और कभी अपनी ज़िम्मेदारी को दूषित नहीं होने दिया।
जिस शासन में जनप्रतिनिधि और पुलिस वाले अपना घर भरने में लगे हों, वहां हेगड़े ग़रीब और बेसहारा लोगों के लिए भगवान की तरह थे, जो अस्पताल से खदेड़ दी गई एक ग़रीब औरत के रात दो बजे किए गए फोन पर प्रतिक्रिया देते हुए अस्पताल फोन करते थे और उसके आठ महीने के बच्चे की भरती सुनिश्चत करवाते थे (हेगड़े के बारे में कर्नाटक में प्रचलित कई कहानियों में से एक)। ऐसे हेगड़े जब इस दर्द के साथ इस्तीफा देते हैं कि पूरी भाजपा सरकार भ्रष्टाचार का पोषण कर रही है, तो निर्लज्ज येद्दुरप्पा एक शातिर राजनेता की तरह यह बयान देते हैं कि उन्हें इस घटना से बहुत सदमा लगा है, लेकिन हेगड़े साहब का शर्मिंदा न करने के लिए वह उनसे इस्तीफा वापस लेने को नहीं कहेंगे। ठीक ही है। येद्दुरप्पा, रेड्डी और गडकरी से शर्मिंदा होने की तो उम्मीद की नहीं जा सकती, हेगड़े ही शर्मिंदा होने के लिए रह गए हैं अब।
सिद्धांत गढ़ने और लच्छेदार ज़ुमले उछालने में भाजपा नेताओं का कोई सानी नहीं है। भय, भूख और भ्रष्टाचार मिटाने का दावा करने वाली यह पार्टी है, जिसके शासन वाले राज्यों में गुजरात को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा हो, जिसके मुखिया पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप न हों। ज्यादा भयंकर बात यह है कि इन आरोपों पर पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को कोई शर्म नहीं आती, उसके कानों पर जूं नहीं रेंगती। अगर उसका मुख्यमंत्री शातिर है, राज्य को लूट का अड्डा बना कर भ्रष्ट विधायकों को अपने काबू में रख रहा हो, तो इससे शीर्ष नेतृत्व को कोई परेशानी नहीं है।
यह मरती हुई पार्टी के सांसों से उठती दुर्गंध है। मेरी चिंता यह है कि स्वामी विवेकानंद, शिवाजी महाराज, मदनमोहन मालवीय, डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार, बाल गंगाधर तिलक और ऐसे ही सैकड़ों खालिस चरित्रवान और देशभक्त महापुरुषों के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नारा देकर चुनाव जीतने वाली भाजपा का यह घिनौना चेहरा देश की जनता का भरोसा पूरे सिद्धांत से कमजोर कर देगा क्योंकि आखिरकार किसी भी राष्ट्र का चरित्र उसके नेता के भाषण से नहीं, बल्कि उसके कृत्य से बनता है।
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2 महीने पहले