सोमवार, 24 दिसंबर 2012

फांसी मांगकर इस सरकार को सेफ पैसेज मत दीजिए

बलात्कारियों को कड़ी सज़ा देने की मांग के साथ शुरू हुए आंदोलन में जिस एक भावना का सबसे उग्र प्रदर्शन हुआ है और हो रहा है, वह है पुलिस का विरोध। कल जिस तरह अलग-अलग जगहों पर आंदोलनकारियों ने दिल्ली पुलिस के कॉन्स्टेबलों की ओर थूका, रोड ब्लॉक कर रहे पुलिस के जवानों की ओर सिक्के उछाले और उन्हें नोट दिखा कर यह संकेत दिया कि आओ, इसी के तो भूखे हो तुमलोग। तो आकर ले जाओ अपनी बोटी और हमें जाने दो- वह दिखा रहा है कि अन्ना के आंदोलन में जो घृणा, जो नफ़रत नेताओं के खिलाफ दिखी थी, कुछ उसी तरह का माहौल इस आंदोलन में पुलिस के खिलाफ़ दिख रहा है।

इस गैंगरेप ने देश को एक बेहतरीन मौक़ा दिया है। मौक़ा व्यवस्था परिवर्तन का। एक बार फिर हमें वही बेवकूफ़ी नहीं करनी चाहिए, जो अन्ना आंदोलन ने की। बलात्कारियों को फांसी तो दीजिए, लेकिन इसका आधार क्या होगा? सबूत और पुलिस का आरोप पत्र। लेकिन अगर पुलिस जांच ही नहीं करे, पैसे खाकर सबूत ही नष्ट कर दे, आरोप पत्र ही न दाखिल करे, तो?

हत्या के लिए फांसी होती है, तो कितनों को फांसी हुई अब तक! 6 महीने और साल भर की बच्चियों का बलात्कार कर हत्या कर देते हैं शैतान- तो क्या यह रेयरेस्ट ऑफ द रेयर केस नहीं है? तो उनमें आरोपियों को फांसी क्यों नहीं होती? उसके लिए तो किसी कानून में बदलाव या संविधान में संशोधन की भी ज़रूरत नहीं। जब देश में 54 फीसदी बलात्कार के मामले पुलिस तक पहुंच ही नहीं पाते और जो पहुंचते हैं उनमें 97 फीसदी के आरोपी 24 घंटे भी जेल में बंद नहीं रहते, तो साफ है कि गड़बड़ी कानून में नहीं, नीयत में है।

यह मौक़ा केवल फांसी की सज़ा मांगने का नहीं, पूरी पुलिस व्यवस्था में सुधार की मांग उठाने का है। सुप्रीम कोर्ट के कई प्रयासों के बाद पुलिस सुधार लागू होने की कोई गुंजाइश नहीं बन रही। इसलिए की राजनीति पुलिस को अपने टूल के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती है। हमें यह याद रखना चाहिए कि यह वही आईपीएस और आईएएस सेवाएं हैं, जिनका गठन अंग्रेजों ने भारतीयों का खून चूसने के लिए किया था।

यह वही पुलिस व्यवस्था है, जिसे भारतीयों को ग़ुलाम बनाए रखने के हथकंडे सिखाए गए थे। इसीलिए ब्रिटेन की पुलिस और भारत की पुलिस में इतना अंतर है। अंग्रेजों ने ब्रिटेन की पुलिस को अपने लोगों की सेवा के लिए बनाया, जबकि भारत की पुलिस को यहां के लोगों पर शासन करने के टूल के तौर पर खड़ा किया। गठन का यह विज्ञान भारत की पुलिसिया व्यवस्था में अब तक उसी तल्खी के साथ दिखता है। इस बदलने का समय आ गया है। पुलिस सुधार तुरंत लागू करने की ज़रूरत है। केवल बलात्कारियों को लिए फांसी का प्रावधान कर इन नेताओं को, इस सरकार को बचने का रास्ता मत दीजिए।

इस पूरे आंदोलन के खिलाफ़ जिस तरह सरकार अपना मुंह चुराती नज़र आ रही है, वह इस बात का सबूत है हम एक ऐसी सरकार के शासन में रह रहे हैं, जो केवल लाल बत्तियों की कारों, एयर कंडीशंड मीडिंग हॉल्स और एसपीजी के सुरक्षा घेरों से शासन करना जानती और चाहती है। ऐसी सरकार की पुलिस से केवल ऐसे ही व्यवहार की उम्मीद की जा सकती है, जो उसने कल दोपहर बाद और शाम को इंडिया गेट पर दिखाया। शांतिपूर्ण तरीक़े से बैठी लड़कियों पर लाठियां भांजी गईं और कड़ाके की ठंड में युवाओं पर पानी की बौछारें छोड़ी गईं। मेट्रो का इंडिया गेट के आसपास के 9 स्टोशनों को बंद करने का फैसला इस डरी हुई बहरी सरकार की चरम मूर्खता का ही संकेत है।

1 टिप्पणी:

प्रशान्त ने कहा…

आपके दोनों ही लेख अच्छे हैं. देखते हैं क्या होता है. लेकिन यहां की जनता की बुद्धि!