रविवार, 9 मार्च 2008

"बाल ठाकरे को एक बिहारी की चिट्ठी"

(ठाकरे कुनबे के मराठा प्रेम जागने और महाराष्ट्र के गली चौराहों में बिहारियों और पूर्वी उत्तर प्रदेशियों को लतियाते-जुतियाते गुंडों को देखने के बाद लालू छाप बिहारी नेताओं की अनर्गल बयानबाजी और नीतीश कुमार की गंभीर प्रतिक्रियाएं तो हम सबने सुनी लेकिन एक आम बिहारी की राय कभी इस दौरान मीडिया में नहीं आई। शायद यही कारण था कि जब मेरे मित्र और पत्रकार प्रभाष झा ने नवभारत टाइम्स की वेबसाइट पर बाल ठाकरे के नाम एक बिहारी की चिट्ठी लिखी, तो मीडिया ने उसे हाथोहाथ लिया। बिहार और झारखंड में प्रभात खबर के लगभग हर संस्करण ने इस चिट्ठी को छापा। लेकिन इस चिट्ठी की चर्चा कुछ अलग कारण से एक और जगह हुई। बीबीसी की वेबसाइट पर छपे एक लेख की पूरी भूमिका वही चिट्ठी थी। बीबीसी के एक वामपंथी पत्रकार, जो उस लेख के लेखक हैं, ने मुसलमानों को विशेष दर्जा देने का विरोध करने वालों को ठाकरे के बराबर माना और महाराष्ट्र में बीच सड़क पर बेइज्जत हो रहे बिहारियों को इस देश में 'अत्याचार सह रहे बेचारे' मुसलमानों के बराबर ठहराया। खैर इस पर बात फिर कभी...। फिलहाल यहां मैं प्रभाष का लेख प्रकाशित कर रहा हूं।)

बाल ठाकरे को एक बिहारी की चिट्ठी

बालासाहब जी ,
पाए लागूं।
हम बिहारी राजनीति को लेकर काफी इमोशनल होते हैं और मैं भी कुछ अलग नहीं हूं। इसलिए जिस उम्र में बड़े-बड़े शहरों के बच्चे फिल्म और कार्टून से मनोरंजन करते रहे होंगे , मैं नेताओं के बयानों और उनके मायने ढूंढ़ने में उलझा रहता था क्योंकि मुझे लगता था कि नेता ही देश का भविष्य हैं। राजनीति के साथ प्रेम परवान चढ़ने के दौर में आप कब मेरे नायक बने , मुझे खुद भी नहीं पता चला। अबोध मन में आपके लिए इतनी इज़्ज़त क्यों थी , आज की तारीख में ठीक-ठीक बताना मुश्किल है। लेकिन शायद इसकी वजह यह रही होगी कि जिस दौर में मैं राजनीति समझ रहा था उस दौर में आप मुझे देश और हिंदू समाज के नायक लगते थे।

जैसे-जैसे राजनीति , देश , समाज और व्यवस्था की समझ बढ़ती गई , आप लगातार नायक से खलनायक के पाले में जाते दिखाई दिए। पहले आप देश को हिंदू और मुसलमानों में बांटने की राजनीति कर रहे थे और मैं हिंदू होने के कारण आपके साथ था। लेकिन फिर आप हिंदुओं को भी मराठी-गैरमराठी में बांटने लगे और मुझे लगा कि न तो आपको हिंदुओं से कोई लेना-देना है न ही हिंदुस्तानियों से। आज मुझे समझ में आ रहा है कि आपको सिर्फ अपने वोट बैंक से मतलब है और उसके लिए आप किसी को भी विलेन बता सकते हैं - चाहे वह आपका भतीजा ही क्यों न हो !

आज जब मैं पहले की तरह बच्चा नहीं रहा तो मैं यह भी सोचता हूं कि कोई ऐसा व्यक्ति किसी राष्ट्र या समाज का नायक कैसे हो सकता है , जो उसको कई हिस्सों में तोड़ने की सियासत कर रहा हो। हालांकि , यह पहली बार नहीं है जब आप और आपकी पार्टी ने भौगोलिक आधार पर देश के किसी खास हिस्से के लोगों को निशाना बनाया हो। लेकिन इस बार बात दूर तलक निकल पड़ी है।

आप मानते हैं कि एक बिहारी , सौ बीमारी। वैसे यह विचार आपके अकेले के नहीं हैं। बिहारी शब्द देश के ज्यादातर हिस्सों में हिकारत का भाव दिखाने का प्रतीक बन गया है। हालांकि , आज सिर्फ वही बिहारी नहीं हैं जिनकी जड़ें बिहार में हैं। दिल्ली और मुंबई में मजदूर , कारीगर , मूंगफलीवाला , गुब्बारेवाला और वे सब बिहारी हैं जिनकी समाज में कोई ' हैसियत ' नहीं है।

आपका और आपके भतीजे राज ठाकरे का आरोप है कि बिहार और पूर्वी यूपी के लोग मुंबई में रहकर मराठी संस्कृति पर हमला बोल रहे हैं। ठाकरे जी , आपने कभी गणेश चतुर्थी पर मुंबई के पूजा मंडपों में जमा होनेवाली भीड़ में शामिल यूपी और बिहार के लोगों की गिनती की होती तो आपको पता चलता कि आपका आरोप कितना गलत हैं। जैसे कलकत्ता में रहनेवाला हिंदीभाषी दुर्गा पूजा में सारे परिवार के साथ पंडाल-पंडाल घूमते हैं , वैसे ही हम भी जहां रहते हैं , वहां के तीज-त्योहारों से खुद को कैसे अलग कर सकते हैं !

लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि हम अपनी संस्कृति से भी उतना ही प्यार करते हैं और हम उसे भुलाना भी नहीं चाहते। इसीलिए जब छठ पूजा होती है तो हम उसे भी पूरी निष्ठा के साथ मनाते हैं। आपको और आपके भतीजे को इस पर एतराज है जो कि मुझे समझ में नहीं आता। ठाकरे जी , अगर आप अमेरिका चले जाएं तो क्या आप वहां गणेश चतुर्थी के दिन उत्सव नहीं मनाएंगे ? अगर आप और आपकी ही तरह सारे मराठी महाराष्ट्र से बाहर भारत में और विदेश में कहीं भी अपने पर्व और त्योहारों को धूमधाम से मना सकते हैं ( और मनाना भी चाहिए ) तो बाकी लोगों पर पाबंदी क्यों ? अगर आपके ही तर्क मान लिए जाएं तो फिर मराठियों को भी राज्य से बाहर गणेश चतुर्थी नहीं मनानी चाहिए। क्या ठाकरे जी , आप भी कैसी बात करते हैं , वह भी उस देश में जिसका मिजाज़ यही है कि आप छठ पूजा में शरीक हों और हम गणपति बप्पा मोरया के नारे लगाएं। हम ईद में शरीक हों और हमारे मुस्लिम भाई दीवाली में। यह ऐसा देश है जहां हिंदू घरों में भी क्रिसमस पर केक खाया जाता है।

बालासाहब जी , हम मानते हैं कि हमारे नेता करप्ट हैं। लेकिन करप्ट नेता कहां नहीं हैं ? अगर अन्ना हज़ारे से पूछें तो शायद वह एक लंबी लिस्ट निकाल देंगे महाराष्ट्र के ऐसे नेताओं की। आप भी कांग्रेसी नेताओं पर भ्रष्ट होने के आरोप लगाते रहते हैं। वैसे भी आप राजनीति में लंबे समय से है , आपको क्या बताना कि इस हमाम में सभी नंगे हैं। रही बात जहालत की और समस्याओं की तो गरीबी और अन्याय अगर बिहार में है तो क्या महाराष्ट्र में नहीं ? आत्महत्या कहां के किसान कर रहे हैं ? क्या उनकी आत्महत्याओं के लिए भी बिहारी ही दोषी हैं ?

मैं बिहार की वकालत नहीं कर रहा। बिहार में समस्याएं हैं। वे सुलझेंगी या नहीं या कितनी जल्दी या देर से सुलझेंगी , यह कहना मुश्किल है। पूंजी निवेश , उद्योग , बाज़ार और रोज़गार के मौके मिलेंगे तो यही बिहार चमचमा जाएगा और सारे पूर्वाग्रह खत्म हो जाएंगे। जब देश के दूसरे हिस्सों के लोग मोटी तनख्वाह पर कॉरपोरेट नौकरी के लिए बिहार जाएंगे तो सच मानिए , बिहार और बिहारी उतने बुरे नहीं लगेंगे।

आपका
प्रभाष झा

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

very good article but sir jee why u saying thakre ma co... ko app that bastard need a tight slap from bihari

अमिताभ मीत ने कहा…

सर जी, चिट्ठी अच्छी है. प्रभाष जी की भावनाओं का आदर करता हूँ. प्रभाष जी इंसान है .... लेकिन ठाकरे नेता है भाई, माफ़ करो उस को. इंसान अपनी समझ की हदों तक ही बात करेगा न ? और अगर वो अपनी समझ की हदों को समझ कर ये बातें कर रहा है, तो उस पर क्या ध्यान देना ? उस को तो माफ़ ही कर दिया जाए. वो कहते है न ..............
Forgive and Forget !! Does he deserve a mention at all ??

संजय शर्मा ने कहा…

प्रभाष जी को धन्यवाद ! आपके लेख की प्रतीक्षा तो अब भी है इस विषय पर .गणेश चतुर्थी बिहार मे भी लेकिन अलग रूप मे मनाया जाता है .हमे इनके नौटंकी से परहेज नही . शिवाजी , तिलक ,गोखले , हेडगेवार , गुरूजी , को आदर्श मनाने वाला बिहार और बिहारी ठाकरे को एक पागल से ज्यादा नही मानता . बिहार का नही महाराष्ट्र की छवि धूमिल करता है ठाकरे का बयान .
बिहार का वर्तमान बेशक पिछडा है ,इतिहास कम गौरवशाली नही रहा है इनसे , अब भविष्य किसका सुनहला होगा
कहा कैसे जा सकता है ? आशावादी बिहारी बिहार का भविष्य सुनहला देखता है .प्रतिरोध से जाहिर है . मुम्बई भारत का है किसी के पापा का नही .