जब भी आतंकवाद की बात होती है और जब भी उसके खिलाफ मुस्लिम समुदाय के सक्रिय सहयोग की बात होती है, इस समीकरण से असहज हुए एक तबके की ओर से छूटते ही एक बड़ा लोकप्रिय जुमला जड़ दिया जाता है- मुसलमानों को किसी से देशभक्ति का प्रमाणपत्र लेने की जरूरत नहीं है। कल मैंने लिखा था कि भारतीय मुसलमानों को कौम के घोषित ख़ैरख़्वाहों की देशविरोधी नीतियों के विरोध में आगे आना चाहिए। प्रसंगवश आरएसएस का भी जिक्र किया था, क्योंकि दुर्भाग्य से इस देश में राष्ट्रीय गौरव और अल्पसंख्यकवाद का विरोध करने वाले सभी लोगों को संघी ही करार दिया जाता है। मुझे चार टिप्पणियां मिलीं उनमें तीन का स्वर यही था कि मुसलमानों को संघ या बीजेपी से देशभक्ति का प्रमाणपत्र लेने की जरूरत नहीं हैं।
मैं आम तौर पर टिप्पणियों पर टिप्पणी करने के पक्ष में नहीं रहता, लेकिन मुझे लगता है कि 'प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है' के जुमले पर मुझे कुछ कहना चाहिए। मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि आपको किसी से देशभक्ति का प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं है, लेकिन आपको अपने आसपास के लोगों और समाज के प्रति संवेदनशील तो रहना ही होगा। दरअसल यह बात समझने में उन लोगों को दिक्कत होती है जो अपने घर को साफ रखने के लिए कचरा सड़क पर फेंकने में यकीन रखते हैं। नहीं तो क्या आप खुद उस मुहल्ले में रहना पसंद करते हैं, जहां आपका पड़ोसी रोज शराब पीकर दंगे कर रहा हो, जहां आपकी बेटी और पत्नी खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर रही हों। वहां तो आप यह जुमला नहीं उछालते कि इस दारूबाज को किसी से अच्छा होने का प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं है। वहां आप उसे मुहल्ले से निकालने के लिए सबसे पहले झंडा उठाते हैं, लेकिन जब यही घटना पड़ोस के मुहल्ले में होती है तो आप उस शराबी के मानवाधिकार का कानून पढ़ने लगते हैं।
पिछले 5 साल में हुए दसियों विस्फोट में पकड़े गए सभी आतंकवादी अगर एक ही कौम के हैं तो क्या इसके लिए दूसरे कौम दोषी हैं। हर दूसरे महीने बाजारों में, अस्पतालों में, रेलवे और बस स्टेशनों पर लोगों के चीथड़े उड़ रहे हैं और हमें कहा जा रहा है कि ऐसा करने वाले भटके हुए बच्चे हैं। हर प्राकृतिक आपदा में बिना मजहब देखे लोगों की दिन-रात सेवा करने वाले लोगों को साम्प्रदायिक होने का प्रमाण पत्र देने वाले लोग सिमी और हूजी का खुलकर समर्थन कर रहे हैं, लेकिन उनसे नहीं पूछा जाता कि उन्हें किसी को सेकुलरिस्ट, फासिस्ट, कम्युनलिस्ट आदि के सर्टिफिकेट बांटने का क्या अधिकार है।
बम विस्फोट के मामले में पकड़े गए हर संदिग्ध के घर वाले अपने बयान में यह जरूर कहते हैं कि उनके बच्चे को इसलिए परेशान किया जा रहा है कि वह मुसलमान है। मतलब किसी को केवल इसलिए नहीं छुआ जाए कि वह मुसलमान है। सुप्रीम कोर्ट को पागल घोषित करने वाले बुखारी की जामा मस्जिद में करीब साल भर पहले एक विस्फोट हुआ था। क्या हुआ उसकी जांच का? वहां गए दिल्ली पुलिस के अधिकारी को वहां से अपमानित कर, डरा कर भगा दिया गया था, जांच भी नहीं करने दी गई। और अब वही बुखारी कह रहा है कि बशीर का बलिदान कौम की भलाई करेगा। यानी सारे आतंकवादी मुसलमानों की भलाई में विस्फोट और हत्याएं कर रहे हैं। इसके बाद भी बुखारी मुसलमानों का सबसे बड़ा मजहबी नेता है। सिमी का समर्थन करने वाले लालू और मुलायम मुसलमानों के सबसे बड़े नेता हैं।
तो अनिल जी, तस्लीम जी और दिनेशराय जी मुझे बताएं कि प्रमाण पत्र का सवाल कहां उठता है। हमारे आसपास, अगल-बगल, आगे-पीछे जो हो रहा है, उसकी अनदेखी एक अंधा भी नहीं कर सकता। सब चीजें शीशे से भी ज्यादा साफ है। फिर भी अगर आप नहीं देख पा रहे, तो मतलब यही है कि आपने अपनी संवेदी इन्द्रियां कुंद कर ली हैं और आप देखना ही नहीं चाहते। आपको यह तो जरूर याद होगा कि विश्व हिंदू परिषद के एक नेता वेदांती ने करुणानिधि का सर काटने का फतवा दिया था और उसके साथ खड़ा होने के लिए एक आम हिंदू की तो बात छोड़िए, बीजेपी और संघ के लोग भी तैयार नहीं हुए। उस समय किसी ने यह सवाल नहीं उठाया कि वेदांती को किसी से सभ्य होने का प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं। यह हाल बुखारी या लालू या मुलायम का क्यों नहीं होता?
बेहतर होता कि अगर प्रमाण पत्र का जुमला फेंकने के बजाय उन मुद्दों पर बात की जाती जिनके कारण यह कहने की जरूरत पड़ रही है कि हमें आपसे प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं।
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4 टिप्पणियां:
बिल्कुल सही कह रहे हैं आप। ये लोगों को बेवजह सांप्रदायिक होने का प्रमाण पत्र तो बांटते रहते हैं लेकिन जैसे ही दहशतगर्द मुसलमानों का नाम घनघोर अमानवीय कृत्यों के साथ जुड़ता है तो चिर-परिचित जुमला उछाल देते हैं। इन लोगों के लिए सरायमीर का अबू बशीर की गिरफ्तारी शहादत है लेकिन आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में मारे गए कर्नल के.के. जोसफ शहीद नहीं हैं। भगवान इनको बुद्धि दे।
आप नॆ ठीक ही लिखा है।जिन स्वनामधन्य लोगों को आपत्ति है,कृपया बताऎ कि सेक्युलरिस्म जैसा हिन्दुस्तान में है वैसा क्या दुनिया के और किसी मुल्क में भी है? मुसलमान क्या सेक्युलरिस्म के सिद्धान्त को सिद्धन्ततः एवं व्यवहार में मानतें हैं? यदि नहीं तो फिर हिन्दुओं को ही ज़बरन मरवानें के लिए सेक्युलर क्यों बनाए रखना चाह्ते हैं? विगत ६१ वर्षों में देश के दोनों बाजू मुस्लिम देश बन चुके है ऎसी अबुद्धिमत्तापूर्ण चमचियाई बातों से तीसरा बनवानें की तैयारी में हैं। इस्लाम और साम्यवाद में कुछ गहरी समानताएं हैं-दोनों लोकतंत्र में आस्था नहीं रखते+दोनों डिक्टेटरशिप मानते हैं+ दोनों अपनें विस्तारवाद के लिए ख़ूरेजी को ज़ायज मानते हैं+दोनों ढोगी और अवसरवादी हैं,लोकतांत्रिक व्यवस्था में तभी तक झूँठी आस्था दिखाते हैं जब तक सत्ता पर काबिज़ नहीं हो जाते। सेक्युलरिस्ट सत्ता लोलुप एवं कायर होते हैं-सत्ता में बनें रहनें के लिए-बहुसंख्यक मूल आबादी के धर्म,दर्शन,संस्कृति,सभ्यता,बहू बेटियों की इज्जत तक के साथ समझौता करके भी सत्ता में बनें रहनें कि कोशिश में लगे रहते हैं। सत्ता में बनें रहनें की हवश के पीछे कोइ आदर्श नहीं होता, सिर्फ और सिर्फ सत्ता की ताकत का सुख और अधिकधिक धन इकट्ठा करना ही लक्ष्य रह्ता है। खतरा देखते ही देश छोड़नॆ के लिए भी तैयार रहते हैं, सोनिया जी की तैयारी थी सभी जानते है। अर्थात देश भक्त भी नहीं होते। सामान्य सेक्युलर भी अच्छी शिक्षा के नाम पर काँन्वेन्ट में बच्चों को पढ़ायेगा और कोशिश करेगा कि बच्चे विदेशों मे सेटल हों जाएँ,जिससे जरुरत पड़े तो खुद भी खिसक सकें।
अनिल रघुराज जी नें व्यँग्य किया है एवं दिनेशराय द्विवेदी जी नें समर्थन किया है कि संविधान से सेक्युलरिज्म/पंथनिरपेक्ष शब्द हटा देंना चाहिये-इस सन्दर्भ में यह याद दिलाना चाहूँगा कि २६ जनवरी १९५० को जो संविधान इस देश में लागू किया गया था उसमें सेक्युलर एवं सोसिय्लिस्टिक शब्द,प्रिएम्बिल में नहीं थे। यह दोनों शब्द १९७४ मे संविधान शंसोधन कर बाद में जोड़े गये थे।
आपने सही लिखा है.
मगर आप अज्ञानी है. आपको नहीं पता की अगर मुझे बुद्धिजीवि कहलवाना है तो मुझे वे बाते कहनी होगी जो मैं मानता हूँ या न हूँ मगर कहना होता है. भले ही वे देशविरोधी, धर्म विरोधी ही क्यों न हो.
कुछ बातें:
हिन्दू हिंसक व बर्बर प्रजा है, मुस्लिम आतंकवाद के लिए वस्तुतः वे ही जिम्मेदार है.
कश्मीर पर भारत का जबरिया कब्जा है, कश्मीर को आज़ाद करना चाहिए.
देश के संसाधनो पर हर नागरीक का समान अधिकार नहीं है, पहला अधिकार अल्पसंख्यको का है.
सिमी के प्रतिभावान लोगो को पुलिस खामखा परेशान कर रही है.
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