फूलपुर संसदीय सीट लगभग 43 साल बाद फिर चर्चा में है। आजादी के बाद के सत्रह सालों तक फूलपुर संसदीय सीट की चर्चा इसलिए होती थी क्योंकि इससे चुना गया एक सांसद देश की राजनीति का केन्द्र हुआ करता था। अपने समकालीन राजनेताओं के बीच सबसे विशाल और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कारण फूलपुर चर्चा में हुआ करता था। इस बार भी यह क्षेत्र अपने सांसद के कारण ही चर्चा में है। लेकिन अब उसका सांसद भारतीय राजनीति के दामन पर एक कलंक बनकर सामने आया है। 1964 में नेहरू की मौत के बाद फूलपुर ने ये तो सोचा भी नहीं होगा कि फिर कभी नेहरू जैसा कोई प्रतिनिधि उसे मिलेगा, लेकिन शायद उसने ये कल्पना भी नहीं की होगी कि अतीक अहमद जैसा कोई हत्यारा और भगोड़ा सांसद उसके मत्थे पड़ेगा।
वैसे दिलचस्प ये भी है कि अतीक अहमद की मौजूदा चर्चा का कारण उसका आपराधिक चरित्र नहीं है, बल्कि उसका समाजवादी पार्टी से निकाला जाना है। अतीक 6 महीने से पुलिस से बचने के लिए भागा फिर रहा था, इसलिए मुलायम यादव को शर्मिन्दगी हुई। उनकी पार्टी का सांसद और भगोड़ा। इसलिए उन्होंने कहा,"अतीक अहमद आपराधिक पृष्ठभूमि के नेता हैं। हमारी पार्टी में दागी और असामाजिक तत्वों के लिए कोई जगह नहीं है।" मुलायम जी की इस घोषणा से उनके शासन में उत्तर प्रदेश को अपराध मुक्त मानने वाले अमिताभ बच्चन जी के अलावा कितने लोग सहमत होंगे, भगवान जाने। जनवरी 2005 में इलाहाबाद (पश्चिम) से बहुजन समाज पार्टी के विधायक राजूपाल की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी। उसके बाद हुए उपचुनाव में मोहम्मद अशरफ ने चुनाव जीता और विधायक बना। मोहम्मद अशरफ सांसद अतीक अहमद का भाई है और राजूपाल की हत्या में इन दोनों को अभियुक्त बनाया गया। उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम यादव का शासन था। अतीक ने कुछ समय के बाद आत्मसमर्पण किया, लेकिन फिर उसे ज़मानत मिल गई। तब से वह ठाठ से पूरे उत्तर प्रदेश में घूमता रहा, पुलिस और प्रशासन को अपने आपराधिक कार्यों के लिए इस्तेमाल करता रहा और मुलायम जी की छत्रछाया में फलता-फूलता रहा। जब मायावती की सरकार बनी, तब से वह फरार है। और अब हत्या के 3 साल और फरारी के 6 महीने बाद एकाएक मुलायम को वह अपराधी और असामाजिक लगने लगा है। एक सवाल और पूछने का मन होता है कि अगर मुलायम के शासन में हत्या का आरोपी अतीक आत्मसमर्पण कर सकता है, तो मायावती के शासन में वही भागाभागा क्यों फिर रहा है। क्या इसलिए कि मुलायम के शासन में उसे ज़मानत का भरोसा था और मायावती के शासन में उसे ज़मानत नहीं मिल सकेगी। तो क्या अदालतें भी सत्ता के हिसाब से फैसले करती हैं। माननीय अदालतें माफ़ करेंगी, ये केवल एक सवाल है। अवमानना का अपराध करने का मेरा न तो इरादा है, न हिम्मत।
वैसे देखा जाए तो अतीक अहमद अपनी प्रजाति का अकेला राजनेता नहीं है। भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का आरोपी मुख्तार अंसारी अब भी जेल में है। ये वही मुख्तार अंसारी है जिसे पूरी दुनिया ने मऊ में जीप पर घूम-घूम कर दंगे कराते देखा था और बाद में उन्हीं दंगों पर बयान देते हुए मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश की विधानसभा में घोषणा की थी कि मुसलमान कभी गड़बड़ी नहीं करते, मऊ के दंगे तो विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की करतूत थे। एक कवयित्री की हत्या के आरोप में जेल में बंद अमरमणि त्रिपाठी और दसियों हत्याओं का आरोपी सीवान का सांसद शहाबुद्दीन जैसे नामों की एक पूरी फेहरिस्त यहां दी जा सकती है। लेकिन मुझे लगता है कि अतीक अहमद एक ख़ास प्रतीक है।
भारतीय राजनीति ने फूलपुर से फूलपुर तक का एक चक्र पूरा किया है। ये राजनीति के नेहरू से अतीक तक के सफर की कहानी है। सैद्धांतिक और चारित्रिक रूप से नेहरू की समीक्षा हो सकती है और मेरा तो ख़ास तौर से मानना है कि नेहरू की विचारधारा ने देश की नींव में इतना बड़ा सुराख किया है जिसे भरने के लिए आज़ादी की एक और लड़ाई लड़ने की ज़रूरत होगी। लेकिन इसके बावजूद ये भी स्वीकार करना होगा कि राष्ट्रीय राजनीति में नेहरू के समान व्यक्तित्व वाला कोई दूसरा समकालीन नेता नहीं था। उसी नेहरू को चुनने वालों का प्रतिनिधि आज अतीक अहमद है। ये प्रतीक है भारतीय राजनीति में आई गिरावट का और इस बात का कि राजनीति में आया पतन दरअसल इस देश की जनता की रानजीतिक चेतना में आए पतना का ही अक्श मात्र है।
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3 टिप्पणियां:
साठ साल के आजाद भारत राजनीतिक सफर कुछ इसी पड़ाव पर पहुंच गया है।
नये परिसीमन में फूलपुल हमारी लोक सभा सीट हो गई है। नये समीकरण क्या रंग खिलायेगे ये बात अभी देखनी बाकी है।
अच्छी लगी इलाहाबाद की चर्चा
pholpur ko sirf chunavi stunt ke hisab se hi jana jata hai. vikas ke naam ki charcha koun karta hai
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