गुरुवार, 10 सितंबर 2009

अब रामनारायण का बेटा भी ज़िहाद करेगा

ये रामनारायण पाकिस्तानी की कहानी है। दो बेटियों का बाप। पत्नी जीवित तो है, लेकिन लापता है। मिलने की उम्मीद भी नहीं, क्योंकि अब उन दोनों के बीच केवल सैकड़ों मीलों की दूरियां ही नहीं, बल्कि हिन्दुस्थान और पाकिस्तान की सर्द, शुष्क सरहद भी है। उम्मीद अगर किसी दिन पैदा हो भी जाए, तो शायद रामनारायण में अपनी जीवनसंगिनी को फिर से पाने की इच्छा ही न हो।

इसलिए नहीं कि उसकी पत्नी का अनगिनत बार बलात्कार किया गया है और इसलिए भी नहीं कि उसे जबरन मुसलमान बनाया जा चुका है, बल्कि इसलिए कि उसके अंदर अपनी पत्नी का नया रूप देख पाने का साहस नहीं है। हर दिन उसे प्यार से भोजन कराने वाली, बीमार होने पर उसकी अनथक सेवा करने वाली और उसके हर दुख में उससे ज्यादा दुखी होने वाली उसकी अर्धांगिनी का नया रूप कैसा होगा, इसकी सोच भी उसे सिहरा देती है। इसलिए अब रामनारायण उसे याद भी नहीं करना चाहता।

अब वह हिन्दुस्थान में है। वह संतुष्ट रहना चाहता है अपनी उन दो बेटियों को देखकर जो तालिबान की दरिंदगी का शिकार बनने से बच गईं। मुसलमान तो अपनी बेटियों के साथ वह खुद भी बन गया था, लेकिन आस्था केवल पूजा पद्धति बदलने का तो नाम नहीं है। कम से कम एक आस्थावान हिन्दू तो यह मानता ही है। इसलिए रामनारायण अपनी बेटियों के किसी तालिबानी नेता का हवस बनने से पहले पाकिस्तान से भागने में कामयाब रहा और अब उसे उम्मीद है तो बस इस बात की कि भारत उसे अपनी गोद में जगह देगा।

वैसे इस देश में एक बड़ी प्रजाति ऐसी है जिनके लिए रामनारायण एक कारतूस है, उन लोगों पर दागने लायक जो बंगलादेशी घुसपैठियों को यहां से निकालने की बात करते हैं। असम की कांग्रेसी सरकारों और पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ने इन्हीं प्रजातियों का प्रतिनिधित्व किया है और बंगलादेशी मुसलमानों को इस हद तक भारत में बसाने की साज़िश की है कि पूरे पूर्वोत्तर पर अलगाववाद का खतरा मंडरा रहा है। इस सेकुलर प्रजाति की अंतरात्मा चीख-चीख कर कहती है कि अगर घुसपैठियों को निकालने की शुरुआत करनी ही तो वह रामनारायण से ही करनी चाहिए। लेकिन ख़ैर! यह विषयांतर हो जाएगा। मैं मूल मुद्दे पर लौटता हूं।

ऊपर की कहानी आज टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड स्टोरी है। इस कहानी को पढ़ने के बाद से मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है। रामनारायण की जो पत्नी अब मुसलमान बन चुकी है क्योंकि तालिबान ने कई बार बलात्कार कर उसका मतांतरण कर दिया है, तो उसके मन की हालत क्या होगी? उसके मन में इस्लाम के प्रति कितनी श्रद्धा, प्रेम या घृणा होगी। लेकिन लाख आक्रोश के बाद भी वह हर अजान के साथ सजदे में बैठती होगी, वो तमाम प्रक्रिया पूरी करती होगी, जिसके न करने पर उसके साथ फिर जिस्मानी और मानसिक बलात्कार किया जाएगा।

फिर सैकड़ों बलात्कारों के बाद हो सकता है कि उसकी कोई संतति भी पैदा हो। वह बच्चा होश संभालने के साथ ही तालिबान मदरसे में जाएगा। उसे बताया जाएगा कि कश्मीर में हिंदू सैनिक उसके क़ौम की औरतों की इज़्ज़त लूटते हैं। उसे मुंबई और गुजरात के दंगों की तस्वीरें दिखाई जाएंगी कि किस तरह भारत में इस्लाम ख़तरे में है। और फिर रामनारायण की पत्नी के जबरन शोषण से पैदा वही बच्चा हाथ में एके 47 लेकर ज़िहाद का पैगाम फैलाने भारत आएगा। मंदिरों, स्टेशनों और बाजारों में लोगों के परखच्चे उड़ा कर आततायी हिंदुओं को सबक सिखाएगा।

क्या भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश के उन सभी आतंकवादियों की कहानी कुछ ऐसी ही नहीं है, जो ज़िहाद को अपना नया मज़हब मान बैठे हैं। यह एक हक़ीक़त है कि तीनों देशों के करीब 40 करोड़ मुसलमानों (मोटी गणना से) में शायद ही 1 फीसदी भी ख़ालिस पश्चिम एशियाई वंशावली से हों। तो इन 40 करोड़ मुसलमानों में कितने यह दावा कर पाएंगे कि उनके दादे-परदादाओं ने इस्लाम का अध्ययन कर, उसे ईश्वर को पाने का ज्यादा आसान रास्ता मानकर हिंदू मान्यताओं और परंपराओं का त्याग किया था। यानी इन 40 करोड़ में से 39 करोड़ 99 लाख 99 हज़ार मुसलमानों के पूर्वज ऐसे हिंदू थे, जिन्होंने इतिहास के किसी-न-किसी मोड़ पर, किसी-न-किसी मज़बूरी में इस्लाम स्वीकार किया।

इनमें से लाखों ने हिंदू समाज की उपेक्षा और अमानवीय परंपराओं के खिलाफ इस्लाम को अपना तारणहार माना होगा और करोड़ों ने अपनी बहुओं, बेटियों, बहनों और बीवियों के बलात्कार के बाद, अपने पिता, मां, बेटों और पोतों की अपनी आंखों के सामने हत्या के बाद या फिर उनकी जान बचाने के लिए इस्लाम स्वीकार किया होगा। लेकिन जैसा कि एक बार विवेकानंद ने कहा था कि एक हिंदू के मतांतरित होने का मतलब केवल यह नहीं कि हिंदू समाज से एक सदस्य की संख्या घट गई, बल्कि इसका मतलब यह भी है कि हिंदू समाज के एक शत्रु की संख्या बढ़ गई। तो शायद इसीलिए आज भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश के ज्यादातर मुसलमान हिंदुओं को अपने दुश्मन की तरह ही देख पाते हैं।

वे याद नहीं करना चाहते कि उनके अंदर भी एक हिंदू का ही खून दौड़ रहा है और कि हो सकता है कि उनके दादा या परदादा ने इस उम्मीद में इस्लाम ग्रहण किया हो, कि एक दिन उनके बच्चे वापस अपनी मूल परंपरा में लौट आएंगे। लेकिन, आज की तारीख़ में यह एक कपोल कल्पना जैसी ही लगती है। फिर भी, क्या मेरे मुस्लिम मित्र एक बार यह विचार करने का साहस नहीं कर सकते कि उनके अंदर भी गंगा, नर्मदा, कृष्णा, कावेरी का ही पानी खून बन कर दौड़ रहा है। चाहे उनका मज़हब आज इस्लाम हो, लेकिन उनकी राष्ट्रीयता भी हिंदू ही है।

6 टिप्‍पणियां:

Batangad ने कहा…

सही एंगल से शानदार विश्लेषण। इस तरह से सोचने की प्रक्रिया भी अच्छे से शुरू हो जाए तो, काफी काम बन जाए।

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…

नपे - तुले शब्दों मैं बिलकुल सटीक विश्लेषण | आपका विश्लेषण पढ़ कर ऐसा लगता है की आपने गागर मैं सागर को समा लिया | मुझे नहीं लगता की कोई भी प्रबुद्ध पाठक इस विश्लेषण को काट सकता है | हाँ, कुतर्कों की बात और है !

आज की मीडिया और तथाकथित विचारक भी विवेकानंद की वाणी "एक हिंदू के मतांतरित होने का मतलब.... यह भी है कि हिंदू समाज के एक शत्रु की संख्या बढ़ गई।" को समझने का प्रयास नहीं कर रहे हैं |

यदि मुसलमान लोग ये याद करें की "उनके अंदर भी एक हिंदू का ही खून दौड़ रहा है और कि हो सकता है कि उनके दादा या परदादा ने इस उम्मीद में इस्लाम ग्रहण किया हो, कि एक दिन उनके बच्चे वापस अपनी मूल परंपरा में लौट आएंगे।" तो सारा झगडा ही ख़तम हो जाएगा | बात ये है की हमारे सेकुलर नेता और मदरसा उन्हें बचपन से ही उलटा सोचने पे मजबूर कर देती है | मुसलमान यदि हिन्दू से मिलकर रहना भी चाहे तो सेकुलर नेताओं की खुजली बढ़ जाती है और मुसलमान को अलग करने के लिए धर्म आधारित आरक्षण, मुसलामानों के लिए special package और ना जाने कौन कौन से पैकेज ले आते हैं | मुझे लगता है सेकुलर नेताओं से भारत को बचाओ ...

KSP1857 ने कहा…

सटीक जानकारी हेतु धन्यवाद। Thnx . keep it up. . .

Common Hindu ने कहा…

http://hinduonline.blogspot.com/


Before the grand lanch function of "Bharat Swabhiman Mission"
Baba Ramdev seems to be genueinly interested
in the betterment of desh, dharam, rajniti
and i used to watch him on Aastha channel regularly

But right from the lanch function of "Bharat Swabhiman Mission"
where Babaji had invited a Shia Muslim maulaavi
and introduced him as his darling brother
speeches of Babaji has lost its sharpness
for the protection of desh, dharam, rajniti

Maybe its the price one has to pay
to garner support of all residing in india
and whether they are muslim
it does not matter

As a common hindu
what more could i have done but
only stopped actively watching Babaji
from that lanch function
though i still regard Babaji
as a great yoga master
and for his oratory skills

But, now in the present controvercy
of Devband fatva against Vande Mataram
attended by Babaji and home minister
hindus should protest and show their displeasure
to both Babaji and home minister
for agreeing to be a part of function
working against the spirit of Bharat
and consolidating/ fanning the Jihadi movement

As politicians support Jihadis
for capturing muslim vote bank
is Babaji trying to capture
muslim and sickular followers
by agreeing to attend Jihadi function
and not speacking out against
the fatva then and there
not even 2 days after that

all this when Babaji is
the most outspoken hindu guru
who is more than ready to
give sound bytes on each and every
topic including yoga
and never take any nonsense
laying down from any celebrited reporters/ editors

is it that like all other leaders
whether they are politicians or not
they are always supporting Jihadis
at the cost of hindus
and like them Babaji too
wants to capture muslim and sickular followers
and / or
even Babaji fears from Jihadis

O Hindus come out of your hibrenation
how long you want to wait
for things to get worse
before trying for their recovery

its easy to get charged up against Jihadis
but path to recovery goes first
by winning over the sickular hindus

O Hindus, this is the time
to lanch campainge against
all sickular hindus
in the form of Babaji
and dont wait for RSS/ BJP/ VHP
dont look forward for their orders
listen to your heart/ mind

Babaji has a reputation
of coming out sucessfully
from every controvery in the past
which where lanched by sickulars
but this time
if common hindus campainge
against his sickular tendencies
at least he has to say sorry
for his moments of weakness

i appeal all PRO-HINDU bloggers
to write-up on this topic from their heart
so that greater clearity and publicity to
hindu's view emerage in media

also remember that
blogging alone cannot provide
answers to worldly problems.


http://hinduonline.blogspot.com/2009/11/original-post-no-4-o-hindus-come-out-of.html



.

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

जब तक क़ुरआन और हदीस के बहुतेरे अंशों को निकाला नहीं जाएगा, कट्टरता वैसी ही बनी रहेगी। सवाल यह है कि यह काम करेगा कौन?
जब तक न हो तब तक इसी में भलाई है कि सतर्क रहा जाय और विरोध जारी रखा जाय।

हितेष ने कहा…

मजहब नहीं सिखाता , आपस में बैर करना " क्या आपको नहीं लगता की अगर हिन्दू , मुसलमान की वैचारिक जंग का समाधान नहीं किया गया तो एशिया में आने वाली पीढियां पेट में से ही बम बंधकर बहारनिकलेंगी