किसी एक ग्रुप के भीतर अगर आपको किसी एक व्यक्ति की मिट्टी पलीद करनी हो, तो दो तरीक़े होते हैं। पहला, आप उसके ख़िलाफ़ सही या ग़लत, किसी भी तरह के मसले पर दुष्प्रचार करें और उसे सबके लिए घृणा का पात्र बना दें। लेकिन इस रास्ते के अपने जोखिम हैं। क्योंकि जैसे ही आप किसी के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार करना शुरू करते हैं, आपके विरोधी उसके स्वाभाविक मित्र बन जाते हैं और फिर जो तटस्थ होते हैं, वह भी आपके चरित्र का विश्लेषण शुरू कर देते हैं।
तो इस काम के लिए दूसरा तरीक़ा ज़्यादा प्रभावी हो सकता है। आप पहले उस व्यक्ति के मित्र बन जाइए। फिर पूरे ग्रुप को यह भरोसा दिला दीजिए कि आपसे बड़ा उसका कोई शुभचिंतक नहीं है। इसके बाद आप ग्रुप को और उसमें सबसे ज़्यादा सम्मानित व्यक्तियों को अपने 'मित्र' की तरफ से ग़ालियां देना शुरू कर दीजिए और ग्रुप के श्रद्धेय प्रतीकों का अपमान करना शुरू कर दीजिए। कुछ ही दिनों में आपका 'मित्र' पूरे ग्रुप में घृणा का पात्र बन जाएगा।
जामा मस्जिद के शाही इमाम बुखारी ने भारत के मुसलमानों की मिट्टी पलीद करने के लिए यही दूसरा रास्ता अपनाया है। उन्हें मुसलमानों का कितना समर्थन और भरोसा हासिल है, ये तो पता नहीं, लेकिन देश की सबसे प्राचीन और विख्यात मस्जिदों मे से एक के इमाम होने के कारण मीडिया और राजनेताओं के दरबार में इन्हें बहुत महत्व दिया जाता है। इनके पूज्य पिताजी ने एक बार सुप्रीम कोर्ट के उनके खिलाफ़ समन जारी करने को चुनौती देते हुए देश के सबसे बड़े न्यायालय को पागल क़रार दिया था और कोर्ट उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका था।
ये मुसलमानों की रहनुमाई का दावा करते हैं और इसी बूते उन्होंने अण्णा के आंदोलन को मुस्लिम विरोधी क़रार देते हुए क़ौम को इससे दूर रहने की सलाह दी है। इनका कहना है कि भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे इस्लाम विरोधी हैं। इनसे कोई पूछे कि आज़ादी की लड़ाई में ये दोनों ही नारे केंद्र में रहे थे। तो क्या भारत की स्वतंत्रता का पूरा आंदोलन भी इस्लाम विरोधी था? बुखारी के इस मूर्खतापूर्ण बयान से क्या मुस्लिम इस देश की मुख्यधारा से कटे हुए नहीं प्रतीत होते हैं? वैसे भी यह कोई मज़हबी आंदोलन तो है नहीं कि इसमें किसी व्यक्ति को पूजा पद्धति के आधार पर अपना रुख तय करने की ज़रूरत हो।
यह आंदोलन विशुद्ध तौर पर एक सामाजिक आंदोलन है। इसलिए कोई भी व्यक्ति जो इसे मुसलमानों, पिछड़ों, दलितों या किसी भी दूसरे वर्ग के आधार पर समर्थन या विरोध का आह्वान कर रहा है, वह उस क़ौम का सबसे बड़ा दुश्मन है। रही भारत माता या वंदे मातरम नारे की बात, तो यह तो निजी विश्वास का मसला है। मैं हिंदू हूं और सनातन काल से यह देश मेरी मां है। यह मुझे मेरी पूजा पद्धति ने नहीं, मेरे खून में हज़ारों साल से बहते मेरे संस्कारों ने सिखाया है। यही खून इस देश के 20 करोड़ मुसलमानों की नसों में भी बह रहा है। चाहे लोभ से या भय से या फिर कुछ अन्य सामाजिक कारणों से, जब इन मुसलमानों के पूर्वजों ने इस्लाम अपनाया, तो उन्होंने अपनी पूजा पद्धति बदली, अपने श्रद्धा केंद्र बदले और प्रेरणा पुरुष बदले, लेकिन उनकी नसों में आज भी अपने हिंदू पूर्वजों का ही खून है। इसलिए यह देश उनकी भी मां ही है।
बुखारी सरीखों का मानना है कि इस्लाम में अल्लाह के अलावा किसी की इबादत करना कुफ्र है, इसलिए भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे इस्लाम विरोधी हैं। पहली बात तो यह कि किसी की जय करना उसकी इबादत करना नहीं होता है और संस्कृत की प्राथमिक जानकारी रखने वाला भी यह बता देगा कि वंदना का अर्थ हमेशा पूजा के तौर पर नहीं होता है। इसके बावजूद अगर इन दोनों नारों से बुखारी को परेशानी है, तो ये नारे लगाना अण्णा के आंदोलन की कोई पूर्व शर्त नहीं हैं। इससे ऐसे तमाम वामपंथी जुड़े हैं, जो जन्म से भले हों, मन से कत्तई हिंदू नहीं हैं। तो बुखारी मुसलमानों के लिए कुछ नए नारे दे सकते थे। लेकिन वह ऐसा करेंगे नहीं।
इसके बजाए वह मुसलमानों को पूरे देश के सामने खलनायक और देशविरोधी साबित करना चाहते हैं। क्योंकि तभी समाज उनके खिलाफ़ प्रतिक्रिया देगा और केवल तभी वह मुसलमानों को बता सकेंगे कि 90 करोड़ हिंदू तुम्हें खाना चाहते हैं और तुम केवल तभी सुरक्षित रह सकोगे, जब मेरी छत्रछाया में रहोगे। क्योंकि अगर देश का मुसलमान अण्णा के साथ खड़ा हो गया और उसने अपनी मज़हबी पहचान की ज़िद छोड़ दी, तो बुखारी की नेतागिरी का क्या होगा। तो अब गेंद मुस्लिम समाज के पाले में है। उसे ही यह तय करना है कि वह देश की मुख्यधारा में बहने को तैयार है या अपने क़ौम के इस शातिर दुश्मन की गोद में खेलने को। इस सवाल का जवाब तय करेगा कि भारत के भविष्य का इतिहास भारतीय मुसलमानों को किस पन्ने पर रखता है।
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6 टिप्पणियां:
भुवन जी, आप तो आर एस एस के प्रवक्ता घोषित कर दिये जाओगे यदि इतना तीखा सच लिख दोगे तो..
सच के लिए यह तो बहुत छोटी कीमत है भाई साहब।
आशंकित हूँ कि पहले कि ही तरह हमारे मुस्लिम भाई देश की मुख्यधारा में जुड़ने के बजाय अपने क़ौम के शातिर दुश्मनों की गोद में खेलने ना लगे. आश्चर्यचकित हूँ कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन में धर्म, जाती angle के चर्चे क्यूँ हो रही है!
Har nagrik is andolan me apni tarah se yogdan de raha hai, chahe wah hindu ho ya muslim. Aaj jarurat is bat ki hai ki ham Bukhari aur Arundhati Ray jaise logo ki tipanniyon per dhyan na de kar unhe hasiye per dhakel den. Aise log hi samaj ke bich ki khai ko patne ke bajaye aur chaura karte hain.
इमाम बुखारी हों या इस ब्लॉग जगत के बुद्धिजीवी, सब वही कर रहे हैं जो उन्हें करना है - ज्यादा दोषी वो हैं जो अंधभक्तों की तरह इनकी बातें मानते हैं।
आपका ब्लॉग कल ही देख पाया हूँ, पसंद आया।
bahut achchhe binduon ko uthata aalekh.Badhai.
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