सोमवार, 7 जनवरी 2008

कैरियर के लिए संबंधों को ठेंगा दिखाने में आगे हैं महिलाएं

मेरा ये लेख पत्रकारों के लिए नहीं है। क्योंकि जिस रिपोर्ट की चर्चा मैं करने जा रहा हूं, वो पत्रकार, ख़ासतौर पर टीवी पत्रकार अपने दैनिक अनुभव से जान चुके हैं। लेकिन दूसरे मित्रों के लिए ज़रूर ये एक नई सूचना साबित हो सकती है।

दरअसल अमेरिका के एक विश्वविद्यालय ने एक सर्वे के बाद खुलासा किया है कि लड़कियां कैरियर के लिए अपने भावनात्मक रिश्तों को ज़्यादा आसानी से ठेंगा दिखा सकती हैं। अब तक तो यही माना जाता रहा है कि लड़कियां ज़्यादा भावुक होती हैं और लड़के ही हैं, जो कैरियर के पीछे भागते रहते हैं। इस बात के लिए हम ज़रूर संतोष कर सकते हैं कि जिन 237 अंडरग्रेजुएट छात्र-छात्राओं को इस सर्वे में शामिल किया गया, वे सब अमेरिकी थे। अब क्योंकि मैं कोई समाजशास्त्री तो हूं नहीं, इसलिए ये दावा भी नहीं करता कि भारतीय महिलाओं के बारे में ऐसी राय नहीं बनाई जा सकती। फिर भी एक भारतीय होने के नाते इस बात से संतोष ज़रूर कर सकता हूं रिपोर्ट का ये निष्कर्ष भारतीय लड़कियों पर लागू नहीं होता।

चाहे अमेरिका में किया गया सर्वे भारतीय समाज पर लागू न होता हो, लेकिन कुछ वर्षों की पत्रकारिता का अनुभव कई बार पत्रकारिता में पहले निष्कर्ष की पुष्टि करता है। समाज जीवन के दूसरे क्षेत्रों में महिलाओं के शोषण की जो अवधारणा है, वो पत्रकारिता में आकर बहुत परिष्कृत हो जाती है। यानी शोषण-शोषित का संबध यहां कारोबार की शक्ल ले लेता है। यहां लेन-देन के सौदे से कैरियर की मंज़िलें तय की जाती हैं और इस रास्ते में भावनात्मक संबंध केवल सीढ़ियां ही होते हैं।

एक पत्रकार होने के साथ मैं एक बिहारी भी हूं, तो इतना कह सकता हूं कि रिपोर्ट का निष्कर्ष बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लड़कों पर भी पूरा ठीक बैठता है। कुछ गिने-चुने स्कूलों को छोड़ दें, तो बिहार और पूर्वी यूपी के बाकी लड़कों की पूरी किशोरावस्था एक हमउम्र लड़की से बातचीत करने की अभिलाषा में ही कट जाती है। वही लड़के जब पढ़ने के लिए दिल्ली आते हैं और ज़रा कोई लड़की उसका नाम लेकर क्या पुकार लेती है, इतने में ही बेचारे पिघल के बह जाते हैं। अब वे बेचारे क्या जाने दिल्ली का समाजशास्त्र। दिल्ली की लड़कियों को एक ओर तो कॉलेज में सुरक्षित महसूस करने के लिए एक लड़के की तलाश होती है, दूसरी ओर शॉपिंग वगैरह में साथ घूमने के लिए एक 'फ्रेंड' भी चाहिए होता है। बिहार और यूपी के लड़के इन कामों के लिए सबसे मुफीद होते हैं क्योंकि जनम-करम में उन्हें पहली तो लड़की मिली होती है, ऐसे में वे बस एकनिष्ठ भाव से उसी की सेवा में लग लेते हैं। सामाजिक संस्कारों की घुट्टी वैसे ही वे कंठ तक पीए हुए होते हैं, तो उनसे किसी दूसरी तरह की 'गड़बड़' का ख़तरा भी नहीं होता। वो तो लड़कों को कॉलेज ख़त्म होने के बाद पता चलता है कि उसके संबंधों की डोरी कैरियर की कैंची के सामने कितनी नाज़ुक है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और बालक बेचारा अपने कैरियर की जवानी में लड़खड़ाता रह जाता है।

इसी रिपोर्ट का एक दूसरा निष्कर्ष भी है। रिपोर्ट के मुताबिक पुरुष अपने विपरीत लिंगी संबंधों से ज़्यादा भावनात्मक सहारा लेते हैं। लेकिन निष्कर्ष का दूसरा हिस्सा कुछ और गंभीर सवाल भी उठाती है। रिपोर्ट का कहना है कि लड़कियों को जब भावनात्मक सहारे की ज़रूरत होती है तो उन्हें लड़कियों पर ही ज़्यादा भरोसा होता है। यानी लड़के उनके भरोसे के क़ाबिल नहीं हैं या फिर वो उनपर भरोसा करना नहीं चाहतीं।

मुझे खुशी होगी अगर कोई महिला इस पर अपनी राय दे, क्योंकि मैं इस निष्कर्ष से बिलकुल भी सहमत नहीं हूं। आप दो लड़कों में ऐसी दोस्ती देख सकते हैं, जहां कोई राज़ न हो। लेकिन दो लड़कियों में ऐसी दोस्ती नहीं हो पाती। लड़कियां लड़कों से तो कई बातें साझा कर लेती हैं, लेकिन बहुत अच्छी समलिंगी दोस्तों से बहुत कुछ छिपा जाती हैं, ऐसा मेरा निजी अनुभव है। लड़कियों में समलिंगी ईर्ष्या का भाव जितना प्रबल होता है, उतना लड़कों में नहीं होता। क्या आप भी मेरी राय से सहमत हैं?

9 टिप्‍पणियां:

sushant jha ने कहा…

भाई साव..लूट लिया आपने...कमाल की बात कही..बहुतों का भोगा हुआ यथार्थ है। धन्यवाद इस रचना के लिए।

sushant jha ने कहा…

भाई साव..लूट लिया आपने...कमाल की बात कही..बहुतों का भोगा हुआ यथार्थ है। धन्यवाद इस रचना के लिए।

Asha Joglekar ने कहा…

य़ह तो इकतरफा न्याय हुआ । यह मानसिकता तो लडके तथा लडकियाँ दोने में है । और बिहारी तो दोस्ती वोस्ती भुला कर मोटा दहेज दे सकने वाले पात्री का ही चुनाव करेंगे ये सब जानतेहैं ।

Shastri JC Philip ने कहा…

काफी अच्छा विश्लेषण है. हां आशाजी ने जो कहा है उसे भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता

जेपी नारायण ने कहा…

स्री को मनुष्य की तरह सोचने-समझने की कोशिश कीजिए, पुरुष की तरह नहीं।

ghughutibasuti ने कहा…

कोई भी दो व्यक्ति पूरी तरह से एक जैसे नहीं होते । ना ही सब लड़कियाँ प्रेम व भावनाओं के लिए अपना कैरीयर दाँव पर लगाती हैं और ना ही सब लड़कियाँ रिश्तों को दाँव पर लगाती हैं । अब बिहार में आप लड़की से बात करने को तरसे तो इसके लिए बेचारी दिल्ली की कन्या क्या कर सकती है । अब वह आपसे बात करती है अत बुरी है । सच तो यह हे कि अचानक लड़के पा रहे हैं कि लड़कियाँ उन्हें विवाह के लिए इन्कार का अवसर दिये बिना खुद ही इन्कार कर दे रही हैं । और शायद उनका पुरुष अहम् इसे सहन नहीं कर पा रहा । वैसे बिहारी व अन्य सब युवकों को हमारी शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती

भुवन भास्कर ने कहा…

आशा जी, घुघूती बासूती जी। आपकी टिप्पणियों में बिहारियों के प्रति कुछ उसी तरह के भाव दिख रहे हैं, जो आमतौर पर बिहार को लालू जी का पर्याय मानने वालों और केवल मीडिया की चटपटी रिपोर्टों से बिहार को जानने वालों में होते हैं। लेकिन मैं इसपर फिलहाल कोई बात नहीं करूंगा, क्योंकि मेरी इस चर्चा का उद्देश्य लड़कों, लड़कियों या बिहारियों का चरित्र विश्लेषण बिलकुल भी नहीं था। मेरा मकसद तो बस एक हलके-फुलके विषय पर कुछ हलकी-फुलकी हंसी-ठिठोली करने भर का था। अगर किसी की भावनाएं आहत हुई हों, तो क्षमा चाहता हूं।

PD ने कहा…

मैं एक ठेठ बिहारी हूं और बिहारी होते हुये भी मुझे कभी इस बात कि कमी नहीं रही की लड़कियां मुझसे बात करे.. अगर यूं कहा जाये कि लड़कों से ज्यादा दोस्त मेरे लड़कियों में है तो ज्यादा सही होगा.. और, जैसा कि यहां कुछ लोग दहेज कि बात कह गयें हैं, तो मैं ये बता देना चाहता हूं कि सवर्ण होते हुये भी मैं ऐसी जाती से हूं जहां दहेज नहीं लिये जाते हैं.. हां उसके बदले में कुछ अन्य सामाजिक बुराईयां हैं..

और मेरा अभी तक का अनुभव यही है कि बिहार से भी जो लड़कियां बाहर आती हैं उनका भी कमोबेश स्वभाव बाहर कि लड़कियों से कुछ अलग नहीं होता है.. और वे किसे और क्यों दोखा देती हैं ये सब परिस्थितीयों पर निर्भर करता है..

मेरा अभी तक का अनुभव तो यही रहा है कि अगर कोई लड़की और कोई लड़का अपने कैरियर को लेकर पोसेसिव हैं तो इसका संयोग ज्यादा है कि लड़की भावनात्मक रिश्तों को ज्यादा वैल्यू ना दें.. यहां बात बिहारी या UP कि नहीं है.. यहां जो भी बिहारी या UP कि बात कर रहें हैं वे सभी उसी पूर्वाग्रह के मारे हैं जिससे सारा भारत जूझ रहा है..

लम्बे कमेंट के लिये क्षमा चाहूंगा..

संजय शर्मा ने कहा…

बढ़िया अनुभव ! अगर मजाक मजाक मे लिखा लेख सामाजिक सोंच और उपजी बदलाव को परिभाषित किया है तो
मजाक काबिले तारीफ़ है . दिल्ली की कोई लड़की नही सब भारत के कोने -कोने से आकर अपने को दिल्ली वाली कहती है .उसमे बिहार और उपी की भी शामिल है . हर समाज पर लागू होता है आपका अनुभव यों कहा जाए
पैसे ने भावना को खरीद लिया है .
कई बार ख़ुद को वह सबसे बड़ा हमदर्द लगता जो आपकी समस्याओं को समाधान दिलाने से पहले उसे बड़ा करके दिखाता हो .जैसे "अरे सही मे तुम्हारे लिए तो बहुत बड़ा प्रॉब्लम है .पता नही भगवन की क्या मरजी है . तुम्हें समस्या पर समस्या दिए जा रहे है " यह सब मर्द बोलता नही महसूसता है ,तुरंत उपाय मे लग जाता है . औरत
स्वभावगत हमदर्दी पहले जाता जाती है उपाय बाद मे .
प्रॉब्लम को जहाँ आपने कम करके कोई उपदेश दिया नही कि आप संवेदन शुन्य हो गए.
रिश्ते ने दम नही तोडा है तो क्रेच और बृद्ध आश्रम और दोपहर मे भरे-भरे पार्क किस बात के सबूत हैं.
लड़की के बारे बहुत ही शर्माता हुआ अनुभव है मेरा फ़िर कभी शेयर कर लूंगा .
बिहारी और बिहारिपना पर गर्व हैं हमे . कम से कम इस बात का कि विकास के नाम विनाश की गर्त मे हम उस वक्त पैर रखते है जब दुनिया वापस लौटने की तैयारी कर चुकी होती है फलतः अपना कदम वापस .
वैसे ज्ञात हो कि जो स्थान भारत का विश्व मे है वही स्थान बिहार का भारत मे है .मनन किया जाय .