राजदीप सरदेसाई का एक सवाल है, जो उन्होंने कांग्रेस नेता जयंती नटराजन से पूछा। जयंती कुछ भी जवाब दें, राजदीप के सवाल से उठने वाले सवाल वाकई मजेदार हैं। राजदीप जानना चाहते हैं कि जिस एस एम कृष्णा को कर्नाटक की सक्रिय राजनीति में उतारने के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से इस्तीफा दिलाया गया, उन्हें पूरे प्रचार अभियान के दौरान कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी क्यों नहीं दी गई। यहां तक तो ठीक है। लेकिन इसके बाद राजदीप ने जो सवाल पूछा और जयंती ने जो जवाब दिया, वह बहुत मजेदार है।
राजदीप ने पूछा कि कृष्णा के साथ इस तरह की रणनीति के लिए जिम्मेदार कौन है, इसके लिए जवाबदेही किसकी होगी। जयंती को चाहिए था कि वे अपने पुराने नेता और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव की शैली में मुस्करा कर शांत रह जातीं। क्योंकि देश की राजनीति का ककहरा जानने वाला आदमी भी जानता है कि कृष्णा को राज्यपाल पद से इस्तीफा दिलाना सोनिया-राहुल के अलावा किसी और के वश की बात नहीं थी। कृष्णा को कर्नाटक की जिम्मेदारी देने या न देने का फैसला करने की औकात कांग्रेस में सोनिया-राहुल के अलावा किसमें है? फिर अगर कृष्णा को अगर राज्यपाल से केवल इस एक चुनाव के लिए इस्तीफा दिलाया गया, तो साफ था कि उन्हें मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया जाना चाहिए था। क्या जयंती बता सकती हैं कि यह अधिकार कांग्रेस में किसके पास है?
लेकिन जिस पार्टी की पूरी राजनीति एक परिवार के प्रति वफादारी के एलान पर टिकी हुई हो, उसके किसी नेता से चुप रहने की राजनीतिक ईमानदारी की अपेक्षा भी मुश्किल है। इसलिए जयंती ने कहा, हम जरूर इसकी समीक्षा करेंगे। मतलब सोनिया की असफलता के लिए एक बार फिर कुछ और गर्दन कटेंगे। खैर, राजशाही में होता भी तो यही है।
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