गुरुवार, 15 मई 2008

सोनिया जी की धर्मनिरपेक्षता और जयपुर के विस्फोटों में संबंध तो है

कितना आसान होता है ऊंची दीवारों के बीच रह कर, लोगों को निर्भीकता का पाठ पढ़ाना, कितना आसान होता है छत के नीचे से बारिश में भीगते लोगों को धैर्य बनाए रखने की शिक्षा देना, कितना आसान होता है खुद एसपीजी के साये में रहकर डरी हुई जनता को शांति का ज्ञान देना। जिस दिन जयपुर में 11 जगहों पर हुए बम विस्फोटों ने 100 घरों में मातम भर दिया, उसी दिन सोनिया गांधी बंगलुरु में एक चुनावी सभा में लोगों को धर्मनिरपेक्षता के विरोधी ताकतों का मुकाबला करने की सलाह दे रही थीं।

ठीक भी है, किसी समाज और देश के अंतर्मन में सर्वधर्म समभाव का उसकी उन्नति और शांति में क्या भूमिका है, इससे किसी को इंकार नहीं। लेकिन जयपुर के धमाके और सोनिया गांधी की धर्मनिरपेक्षता में कुछ संबंध तो है। साल 2000 के बाद से देश में जो भयंकर आतंकवादी हमले हुए हैं, उनकी फेहिरस्त देखिए। लाल किला हमला, संसद हमला, समझौता एक्सप्रेस विस्फोट, मुंबई बम विस्फोट, दिल्ली में लाजपत नगर विस्फोट, वारणसी में संकटमोचन हनुमान मंदिर विस्फोट, हैदराबाद में हुए विस्फोट, मालेगांव में हुए विस्फोट और अब जयपुर में हुए ताजा विस्फोट। इनमें लाल किला और संसद पर हुए हमलों को छोड़कर बाकी सभी सोनिया गांधी जी की सरकार में हुए। लाल किला और संसद हमलों की जांच पूरी हो चुकी है। अदालतों के फैसले आ चुके हैं। क्या किसी को भी पता है कि इनके अलावा बाकी विस्फोटों की जांच कहां तक पहुंची है?

यह सही है कि सरकार हर जगह हर हमला नहीं रोक सकती। लेकिन प्रशासन का ककहरा समझने वाला भी जानता है कि रथ में जुते सात घोड़ों के नियंत्रण के लिए सातों के पीठ पर सवार होना जरूरी नहीं। सारथी के लगाम पकड़ने का तरीका ही घोड़े को बता देता है कि उसे नियंत्रण में चलना है। सोनिया जी ने सरकार के रथ का लगाम पकड़ते हुए घोड़ों को जो संदेश दिया, वह था कि इस देश का हर आतंकवादी एक मुसलमान है और क्योंकि मुसलमान से हमारी सत्ता है इसलिए किसी भी आतंकवादी को परेशान न किया जाए। सुनने में बहुत ही कठोर और सनकी सा बयान लगता है ये, लेकिन जिस सरकार की पहली प्राथमिकता आतंकवाद का मुकाबला करने को खास तौर पर तैयार किया गया कानून पोटा हटाना हो, उसके अधिकारियों को क्या संकेत मिलेगा, आप ही बता दीजिए।

पोटा पर आरोप था कि इसमें केवल मुसलमानों को ही पकड़ा जा रहा है। इस आरोप का जवाब आप सबको पता है। लेकिन मैं यह कहता हूं कि अगर किसी कानून में खामी होने का मतलब ही उसे खत्म करना है, तो सबसे पहले इस देश से पुलिस व्यवस्था को खत्म करना चाहिए। क्योंकि जितना दुरुपयोग इस व्यवस्था का हो रहा है, गरीबों पर जितना अत्याचार इस संस्था ने किया है, उतना पूरी ज़मींदारी व्यवस्था ने मिलकर भी नहीं किया होगा। हां, लेकिन यहां गरीबों की बात है, मुसलमानों की नहीं, इसलिए पुलिस व्यवस्था का अत्याचार, भ्रष्टाचार सब सहनीय है।

तो इसीलिए मैंने कहा कि सोनिया गांधी की धर्मनिरपेक्षता और जयपुर के विस्फोट में कुछ संबंध तो है। सोनिया गांधी या वामपंथियों के लिए धर्मनिरपेक्षता के दुश्मन का मतलब क्या है, यह जानने के लिए किसी खास खुफिया रिपोर्ट की जरूरत नहीं है। उनके लिए साम्प्रदायिक का मतलब हर वह हिन्दू है, जो गला फाड़ कर यह कह सकता है कि हां मैं हिन्दू हूं। उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का मतलब प्रधानमंत्री का यह बयान है कि देश के संसाधनों पर पहला हक देश के अल्पसंख्यकों (मतलब मुसलमानों) का है। उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का मतलब न्यायालय में हलफनामा देना है कि राम एक काल्पनिक चरित्र हैं। उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का मतलब कुतुब मीनार के लिए मेट्रो का रास्ता तबदील करना और समुद्री जहाज चलाने के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा फायदेमंद विकल्पों को छोड़ कर राम सेतु तुड़वाना है। उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का मतलब एक छोटे से गुट के चलते तसलीमा नसरीन को नजरबंद कर मानसिक तौर पर इस हद तक प्रताड़ित करना है कि वह देश छोड़कर चली जाएं। उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का मतलब कोयम्बटूर बम विस्फोट के आरोपी केरल के मदनी का जेल से छूटने पर जोरदार स्वागत करना है। उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का मतलब बंगलादेशी घुसपैठियों को बसाने में सहयोग करना है। उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का मतलब मुस्लिम बहुल जिलों की पहचान कर उन्हीं पर विकास की वर्षा करना है। और जो कोई भी उनकी इस धर्मनिरपेक्षता का विरोधी है, वह साम्प्रदायिक है। बंगलुरु की चुनावी सभा में दरअसल सोनिया जी इन्हीं साम्प्रदायिकों का विरोध करने के लिए कह रही हैं।

पिछले साल संसद के एक सत्र में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सरकार से सवाल पूछा था कि हैदराबाद बम विस्फोट के सिलसिले में किसी मस्जिद के एक मौलवी को गिरफ्तार किया गया था, फिर उसे बिना किसी कागजी कार्यवाही और पूछताछ के छोड़ दिया गया, क्यों? सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया, ठीक वैसे ही जैसे फांसी की सजा मिलने के साल भर से ज्यादा होने के बाद भी आज देश को पता नहीं है कि संसद हमले का आरोपी अफजल आखिर जिंदा क्यों है? आखिर कौन लोग हैं, जो सरकार के शीर्ष स्तर से यह धर्मनिरपेक्षता निभा रहे हैं। जो भी हों, इससे इतना तो तय है कि सोनिया जी की धर्मनिरपेक्षता और जयपुर के विस्फोटों में संबंध तो है।

4 टिप्‍पणियां:

अनिल रघुराज ने कहा…

भुवन जी, एकदम किसी मौलवी की तकरीर का अंदाज है। शैली जबरदस्त है। बेहद रोचक। एक सांस में पढ़ गया।

संजय बेंगाणी ने कहा…

अच्छा लिखो हो बन्धू, एक साँस में पढ़ने को मजबुर हो गये.

क्या हम सचमुच आतंकवाद से लड़ने को तैयार है?

Unknown ने कहा…

जो मेरे मन में रहता है वह आपने कह दिया. बहुत बहुत धन्यवाद. किसी घर को बाहरी दुश्मनों से इतना खतरा नहीं होता जितना अंदरूनी दुश्मनों से. आज देश में देश के अंदरूनी दुश्मनों की सरकार है.

Batangad ने कहा…

हर शाख पे उल्लू बैठे हैं ...
यूपी में मुलायम सरकार के दौरान ही SIMI सबसे ज्यादा फूली-फली। बाकायदा कॉलेज, विश्वविद्यालय परिसरों में। SIMI का अध्यक्ष उस सरकार में लालबत्ती में घूमता था ये भी खबरें थीं।