सोमवार, 24 दिसंबर 2007

...और अब शुरू होती है प्रतिक्रियाओं की राजनीति

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक जीत पर बहुत दिलचस्प प्रतिक्रियाएं आई हैं। पहले मोदी विरोधियों की बात करें। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फोन कर मोदी को बधाई दी, लेकिन उनकी पार्टी यानी कांग्रेस ने मोदी की जीत को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया। यानी कांग्रेस मानती है कि मोदी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी को वोट देने वाले 48% गुजराती लोकतंत्र के विरोधी हैं। विडंबना देखिए, अपने विचार से सहमति न रखने वाली करोड़ों जनता को लोकतंत्र विरोधी क़रार देने वाली कांग्रेस के प्रवक्ता कपिल सिब्बल अपनी प्रतिक्रिया में मोदी को फासिस्ट क़रार देते हैं। ये फासिस्ट शब्द बड़ा ही मज़ेदार लगने लगा है अब। ख़ैर, इसपर चर्चा फिर कभी। वामपंथियों की प्रतिक्रिया और भी रोचक है। उन्होंने कांग्रेस को नाकारा क़रार देते हुए आरोप लगाया है कि यूपीए सरकार का न्यूनतम साझा कार्यक्रम लागू न किए जा सकने के कारण ही मोदी की जीत हुई है।

बेचारे भाजपाई नेताओं की स्थिति तो बहुत ही दयनीय रही है। उनकी प्रतिक्रिया दोधारी तलवार पर चलने के समान थी। उनसे पूछा जा रहा था कि क्या मोदी की जीत से पार्टी उनके सामने पिद्दी हो गई है, क्या मोदी अब आडवाणी की छाती पर मूंग दलेंगे, क्या हिंदुत्व की जगह अब मोदित्व ने ले लिया है। अब बेचारे भाजपाई प्रवक्ता के सामने संकट कि बोलें क्या? हां बोलें तो भी फंसे और ना तो भी। वो कहानी सुनी ही होगी आपने कि एक बार पोप अमेरिका की यात्रा पर गए। जैसे ही पोप अमेरिका की धरती पर उतरे, हवाईअड्डे पर एक पत्रकार ने उनसे पूछ लिया- वुड यू लाइक टू विजिट न्यूडिस्ट क्लब्स इन अमेरिका (क्या आप अमेरिका में स्थित नंगों के क्लब) में जाएंगे। अब पोप थे बड़े समझदार। सोचा, अगर कह दूं जाउंगा, तो सब कहेंगे कि पोप होकर नंगों के क्लब में जाना चाहते हैं और अगर कह दूं नहीं जाउंगा, तो सब कहेंगे पोप होकर भी सुधार की जगह बहिष्कार कर रहे हैं। तो पोप ने समझदारी दिखाते हुए उस पत्रकार से ही पूछ लिया- इज़ देयर एनी न्यूडिस्ट क्लब इन अमेरिका (क्या अमेरिका में नंगों के क्लब भी हैं)? इसके बाद पोप चले गए। लेकिन अगले दिन सुबह उन्होंने अखबार देखा तो उसकी सुर्खी थी- अमेरिकी धरती पर पैर रखते ही पोप ने पूछा, क्या अमेरिका में नंगों के क्लब हैं? मुझे नहीं पता कि ये कहानी कितनी सही है या ग़लत। लेकिन सुर्खियां बनाने की मज़बूरी में अक्सर पत्रकार ऐसी रचनात्मकता दिखाते हैं। तो भाजपाई प्रवक्ताओं के सामने भी इसी रचनात्मकता का जाल फेंका गया। अरुण जेटली, राजनाथ सिंह, मुख्तार अब्बास नकवी, नवजोत सिंह सिद्धू, प्रकाश जावड़ेकर, शहनवाज हुसैन जैसे भाजपा नेताओं को पता तो ज़रूर होगा कि उनके जवाबों की क्या सुर्खियां बनेंगी, लेकिन उनके पास कोई चारा भी नहीं था। एनडीटीवी के विजय विद्रोही ने राजनाथ सिंह से पूछा- क्या मोदी पार्टी से बड़े हो गए हैं? राजनाथ ने कहा पार्टी से बड़े तो अटल बिहारी वाजपेयी भी नहीं हैं, ये मोदी के नेतृत्व में पार्टी की जीत है। एनडीटीवी ने सुर्खी बनाई कि भाजपा अध्यक्ष मोदी की जीत में केंन्द्रीय नेतृत्व के हिस्से का भी दावा ठोक रहे हैं। पुण्य पसून वाजपेयी के नेतृत्व में तेज़ी से उभर रहे 'समय' के एक रिपोर्टर ने अरुण जेटली से पूछा कि क्या मोदी की जीत से दूसरी पंक्ति के नेताओं को बेदखली का डर सताने लगा है? जेटली ने जवाब दिया- आगे चलकर क्या होगा मुझे नहीं पता, लेकिन मोदी अभी गुजरात के मुख्यमंत्री होंगे। समय के डेस्क ने तुरंत अपनी रचनात्मकता का भरपूर इस्तेमाल करते जेटली को कोट करते हुए फ्लैश चलाया कि मोदी निभा सकते हैं राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका।

दरअसल प्रतिक्रियाओं का भी अपना एक मैकेनिज़्म होता है। क्या आपने कभी किसी विपक्षी नेता को सरकारी बजट की तारीफ करते सुना। क्या आपने कभी किसी भ्रष्ट या दुराचारी नेता की मौत पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में नेताजी के कुकर्मों या उन पर जारी मुकदमों की चर्चा सुनी। बाबरी ढांचा गिरने पर घर में जश्न मनाने वाले कई कांग्रेसियों को मैंने सार्वजनिक तौर पर मातम करते देखा है। आपसी बातचीत में गुजरात दंगों में मारे गए मुसलमानों को अच्छा सबक सिखाए जाने के सिद्धांत की वकालत करने वाले कई लोगों को मैंने सार्वजनिक तौर पर उन्हें दुखद घटना कहते हुए सुना है। क्योंकि प्रतिक्रियाओं का मतलब ही किसी विषय पर अपनी राय सार्वजनिक तौर पर ज़ाहिर करना होता है, इसलिए प्रतिक्रियाएं आपकी सार्वजनिक निष्ठाओं की मज़बूरी से ही पैदा होती हैं। इसी लिहाज से चाहे प्रधानमंत्री, कांग्रेस या कपिल सिब्बल हों, या भाजपाई नेता या फिर अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताओं में जकड़ी मीडिया, सबकी प्रतिक्रिया सार्वजनिक निष्ठाओं की मज़बूरी ही है। तभी तो पत्रकारिता की सारी मर्यादाएं ताक पर रखकर अब तक मोदी के खिलाफ एड़ी-चोटी एक करने वाले एनडीटीवी के आत्ममुग्ध 'पत्रकार' अब हमें ये बताकर खुश हो रहे हैं कि मोदी की जीत दरअसल भाजपा, संघ और विश्व हिंदू परिषद की हार है।

1 टिप्पणी:

संजय शर्मा ने कहा…

क्या बढ़िया लिखते है ! बिल्कुल सही वो भी तह मे जाकर . राम मन्दिर के मूक समर्थन मे खड़े कांग्रेस को भी देखे जाने की जरूरत है .