शनिवार, 1 दिसंबर 2007

लाशों की ढेर पर नंबर वन का तमगा

बधाई हो। जनसंख्या के मामले में तो हम चीन को पीछे छोड़ने जा ही रहे हैं, अब एक और मोर्चे पर हमने चीन को पीट दिया है। जी हां, पिछले साल यानी 2006 में हम सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों की संख्या के हिसाब से पहले नंबर पर पहुंचने जा रहे हैं। हमने चीन को दूसरे स्थान पर धकेल दिया है।

सड़क दुर्घटनाओं की बात उठते ही सबसे पहले ध्यान आता है विकास। 'समाजवादी' आर्थिक विकास ने हमारे यहां निजी गाड़ियों की संख्या जो बढ़ा दी है। तो दुर्घटनाएं भी होंगी। लेकिन ठहरिए। 2005 के मुकाबले चीन में सड़क दुर्घटनाएं भले ही 9.4% गिरी हों, लेकिन वहां निजी गाड़ियों की संख्या में 18.8% का इज़ाफा हुआ है। 2005 में चीन में सड़क पर मरने वालों की संख्या 98,738 थी, जबकि हम 96 हज़ार से ज़्यादा लाशों के साथ दूसरे नंबर पर थे। भारत के 2006 के आंकड़े अभी आए नहीं है। चीन में ये संख्या 9.4% गिरकर 89,455 रह गई है, जबकि अनुमान है कि हमारी सड़कों पर 2006 में मरने वालों की संख्या 1 लाख का आंकड़ा पार कर गई है।

दरअसल हम और हमारी सरकार, सबने सड़क दुर्घटनाओं को व्यक्तिगत समस्या मान लिया है। सड़क पर हुई हर मौत की समीक्षा ड्राइवरों की लापरवाही या ज़्यादा से ज़्यादा गाड़ियों की तकनीकी गड़बड़ी की चर्चा तक ही सीमित रह जाती है। लेकिन चीन या दुनिया के दूसरे विकसित देशों में सड़क दुर्घटनाओं को कम करने पर लगातार शोध हो रहे हैं। नई-नई तकनीकें विकसित की जा रही हैं और उन्हें सड़कों पर उतारा जा रहा है। जबकि हमारे यहां...जहाजरानी, सड़क परिवहन और हाइवे मंत्रालय ने सड़क दुर्घटनाओं पर आखिरी बार शोध 1995 में करवाया था। तब से सड़क दुर्घटनाओं की संख्या दोगुनी हो चुकी है।

पिछले कुछ महीनों में दिल्ली में ब्लू लाइन बसों की चपेट आकर मरने वालों की संख्या 100 से ज़्यादा होने और पूरे मामले पर मीडिया के अभियान छेड़ने के बावजूद इस मसले पर सरकार का जो रुख़ हमने देखा है, वो एक बार फिर केवल और केवल यही दिखाता है कि आम आदमी की जान हमारी सरकारों के लिए कितनी सस्ती है। फरवरी 2007 में सुंदर कमेटी ने रोड सेफ्टी पर अपनी रिपोर्ट पेश की थी, लेकिन उसके बाद के 10 महीनों में रिपोर्ट पर बैठकों के अलावा कुछ नहीं किया गया।

यानी सरकार के लिए सड़कों पर हो रही मौतें प्राथमिकता सूची में सबसे आखिरी में है, या शायद है ही नहीं। फिर तो एक ही रास्ता बचता है कि हम इस सरकार की पीठ ठोंके और कहें,"बधाई हो, चीन को पीछे छोड़ कर हम नंबर वन हो गए हैं, क्या हुआ जो ये तमगा लाशों की ढेर पर मिला हो।"

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