शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

ये हिंदू उदारता के वेस्ट बाईप्रोडक्ट्स हैं, इन्हें झेलते रहिए

इमाम अब्दुल्ला बुखारी ने पत्रकारों से भरे प्रेस कांफ्रेंस में एक पत्रकार को खुद भी पीटा और अपने गुंडों से भी पिटवाया। एक उर्दु अखबार के उस पत्रकार का दोष यह था कि उसने एक ऐसा सवाल पूछ लिया था, जो बुखारी को पसंद नहीं आया। सवाल था कि 1528 में अयोध्या के राम जन्मभूमि का खेसरा राजा दशरथ के नाम था। तो राजा रामचंद्र ही उसके स्वाभाविक उत्तराधिकारी होंगे। यह बात उच्च न्यायालय ने भी स्वीकार की है और सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जिलानी को भी इसकी जानकारी है। तो आपसी भाईचारे के लिए मुसलमान भाई क्यों नहीं राम जन्मभूमि हिंदुओं को सौंप देते। सवाल सुनने भर की देरी थी कि एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक मुस्लिम पूजा स्थल के मुख्य पुजारी ने गुंडों की भाषा में चिल्लाते हुए पत्रकार अब्दुल वहीद चिश्ती को गंदी और भद्दी गालियां दीं, उन्हें कौम का दुश्मन करार दिया और उनका सर कलम करने का आदेश दिया।

कल्पना कीजिए कि इस घटना में बुखारी की जगह विश्व हिंदू परिषद या बजरंग दल का कोई नेता होता या किसी प्रतिष्ठित मंदिर के पुजारी होते, तो क्या होता। एनडीटीवी जैसे सेकुलर चैनल की अगुवाई में तमाम फेसबुकिए सेकुलरों ने हंगामा खड़ा कर दिया होता। देश के गृहमंत्री ने तो पहले ही आतंकवाद पर भगवा रंग पोत दिया है, अब हिंदू संगठन और पुजारियों के लिए भी नए-नए विशेषण गढ़े जा रहे होते। लेकिन देखिए सेकुलरिज्म का चमत्कार। सेकुलरों के मुंह पर ताला जड़ा है। बुखारी की गुंडागर्दी का यह पहला उदाहरण नहीं है। अभी कुछ साल पहले इसने जी न्यूज के एक पत्रकार (इत्तेफाक से वह भी मुस्लिम थे) पर भी हमला करवाया था। इसके बावजूद मुझे याद नहीं आता कि बात-बात में हिंदू प्रतीकों, संगठनों और परंपराओं पर नाक-मुंह बिचकाने वाले सेकुलरों ने कभी औपचारिकता के लिए भी इसके खिलाफ अपने जीमेल स्टेटस में या फेसबुक लेबल में विरोध दर्ज कराया हो।

यही है भारत में सेकुलरिज्म का असली चरित्र। क्योंकि खुद को हिंदू विरोधी नहीं कह सकते, तो सेकुलर कहा जाता है। इन्हें मुसलमानों से भी प्रेम नहीं है। इन्हें बुखारियों, मदनियों और गिलानियों से प्रेम है। कोई मुसलमान इन लोगों के खिलाफ खड़ा होकर तो देखे, समर्थन तो दूर की बात ये सेकुलर उन्हें सहानुभूति देने तक नहीं आएंगे। अफसोस की बात यह है कि इसमें आप और हम तो क्या कहें, खुद ये सेकुलर भी कुछ नहीं कर सकते। इनकी मानसिक रचना ही कुछ ऐसी है, जन्मगत संस्कार ही कुछ ऐसे हैं। हिंदू संस्कृति और गौरव से जुड़ी हर बात का विरोध करने में इन्हें असीम आनंद का अनुभव होता है और उसी से उन्हें ऊर्जा भी मिलती है। इसलिए इनमें सुधार की उम्मीद व्यर्थ है। ये हिंदू परंपरा की उदारता के वेस्ट बाईप्रोडक्ट्स (कचरे) हैं, इन्हें झेलते रहिए।