रामदेव के शिष्य बालकृष्ण आज की तारीख में देश के सामने कानून-व्यवस्था की सबसे बड़ी समस्या बने हुए हैं। उत्तर प्रदेश में तीन-तीन मेडिकल अफसरों की हत्या, विदेशी बैंकों में पड़े हजारों या लाखों करोड़ रुपए की काली रकम, मुंबई में हुआ ताजातरीन आतंकवादी हमला- सब पृष्ठभूमि में चले गए हैं। रोज बालकृष्ण के बारे में नई-नई खबरें आ रही हैं। उन्होंने नकली पासपोर्ट बनवाया, रिवॉल्वर खरीदा, पिस्तौल खरीदा और पता नहीं क्या-क्या। लेकिन बालकृष्ण के बारे में ये सारी सच्चाइयां सरकार के खिलाफ रामदेव के मोर्चा खोलने के बाद ही क्यों सामने आईं?
यह समझना मुश्किल नहीं है। हां, यह समझना मुश्किल जरूर है कि लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित कोई सरकार इस हद तक निर्लज्ज कैसे हो सकती है। इस पूरे प्रकरण से कोई एक बात सबसे साफ तौर पर साबित हुई है, तो वह यही है कि देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई की कोई संवैधानिक निष्ठा नहीं है और वह बस सरकार के दरवाजे पर बैठा एक पालतू कुत्ता है, जिसका काम केवल सरकार के इशारे पर दुम हिलाना, भौंकना और समय पड़ने पर काटना है।
चार साल पहले ठीक इसी तरह का एक और मामला सामने आया था। असम के तेजपुर से कांग्रेस सांसद एम के सुब्बा पर आरोप लगे कि वह नेपाल के नागरिक हैं और फर्जी तरीकों से उन्होंने भारत की नागरिकता हासिल की। सीबीआई जांच करती रही और सुब्बा भारतीय संसद की शोभा बढ़ाते रहे। चार साल की जांच के बाद जनवरी 2011 में जाकर आखिरकार सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल किया जब सुब्बा पहले ही पांच साल तक सांसद होने की सारी शक्तियों, अधिकारों और फायदों का लाभ उठा चुके थे। आरोप पत्र में सुब्बा के नेपाली नागरिक होने की पुष्टि कर दी गई। लेकिन इसके बावजूद सुब्बा आज भी भारतीय नागरिकता के मजे लूट रहे हैं।
इसकी तुलना बालकृष्ण के मामले से कीजिए। मई की शुरुआत में रामदेव की सरकार से भिड़ंत हुई। और तीन महीने बीतते-बीतते बालकृष्ण की गिरफ्तारी के लिए सीबीआई ने पैर पटकने शुरू कर दिए। उससे पहले तक बालकृष्ण की लिखी चिट्ठी दिखाते सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों से कोई पूछे कि पिछले कई सालों से, जब बालकृष्ण सार्वजनिक सभाओं में और टीवी चैनलों पर अपने आयुर्वेद ज्ञान का प्रदर्शन कर रहे थे, तब सरकारी मशीनरी को क्यों इस बात का इल्म नहीं हो सका कि बालकृष्ण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे हैं?
लेकिन इस सरकार से किसी तरह के जवाब की उमीद करना ही व्यर्थ है। बिना चेहरे, बिना जवाबदेही और बिना दिशा वाली इस सरकार की कमान एक ऐसी महिला के हाथ में है, जिसे चारणों और चाटुकारों से घिरे रहने की आदत हो, जिसने खुद कभी किसी सरकारी फैसले के लिए कोई जवाबदेही न ली हो, जो रिमोट कंट्रोल से शासन करने में विश्वास रखती हो और दिग्विजय सिंह जैसे निम्नस्तरीय नेता जिसके सबसे बड़े औज़ार हों, उससे आप क्या उमीद-कर सकते हैं। मत भूलिए कि इटली की इसी अंडर ग्रेजुएट के पीएम इन वेटिंग लाडले को आरएसएस जैसे संगठन लश्करे तोएबा से ज्यादा ख़तरनाक लगते हैं। तो अगर बालकृष्ण अगर आज इस देश की सबसे बड़ी समस्या हैं, तो इसमें आश्चर्य क्या है।
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3 हफ़्ते पहले