मलेशिया में लगभग 150 सालों से रह रहा हिंदू समाज आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है और इस लड़ाई में बड़ी उम्मीदों से अपनी पितृभूमि की ओर देख रहा है। मलेशिया की 2.8 करोड़ जनसंख्या में क़रीब 8% यानी 17 लाख हिंदू रहते हैं, जिन्हें लगभग डेढ़ शताब्दी पहले अंग्रेज ग़ुलाम बना कर ले गए थे। इस आबादी का 80% तमिल हिंदू हैं। इसलिए स्वाभाविक तौर पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस मामले में हस्तक्षेप की गुज़ारिश की है। लेकिन एम करुणानिधि की चिंता पर मलेशिया के मंत्री नजरी आजिज ने जो प्रतिक्रिया दी वह अपने आप में स्थिति की विकरालता दिखाता है। आजिज ने कहा,'यह मलेशिया है, तमिलनाडु नहीं। यहां के मसलों से उनका कोई लेना-देना नहीं है। वह अपने काम से काम रखें।'
मलेशिया में हिंदुओं के हक़ की लड़ाई लड़ रहे हिंदू राइट्स एक्शन फोर्स का आरोप है कि पिछले कुछ महीनों में वहां लगभग 10,000 मंदिरों को ज़मींदोज कर दिया गया है। सरकार का कहना है कि वे मंदिर सरकारी ज़मीन पर बने हुए थे और इसलिए अवैध थे। लेकिन मलेशियाई सरकार के अकेले हिंदू मंत्री दातुक सेरी सम्य वेल्लु का कहना है कि क्योंकि वहां हिंदुओं को ज़मीन के अधिकार ही नहीं हैं, इसीलिए मंदिर सरकारी ज़मीन पर बने हैं। लेकिन सवाल केवल मंदिर का नहीं है। मलेशिया में हिंदुओं के लिए स्थिति दिनोंदिन ख़तरनाक होती जा रही है। कुछ संवाददाताओं ने जब मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में बसे हिंदुओं से उनकी हालत के बारे में बात करने की कोशिश की, तो खौफ का आलम ये था कि कोई अपना नाम तक नहीं बताना चाहता था। मलेशियाई हिंदुओं के हीरो और एवरेस्ट फतह करने वाले पहले मलेशियाई मण्यम मूर्ति को सरकारी दस्तावेजों में इस्लाम अपनाया हुआ दिखाया गया और 20 दिसंबर 2005 को जब उनकी मौत हुई तो उनकी पत्नी के विरोध के बावजूद उन्हें दफना दिया गया। ये एक उदाहरण है कि मलेशियाई हिंदुओं की संस्कृति और पहचान पर किस हद तक ख़तरा गहरा गया है। तुर्रा ये कि अपने धर्म और संस्कृति पर हमला करने वालों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले हिंदुओं को सरकार के मंत्री और अधिकारी सीधे तौर पर कह रहे हैं कि अगर यहां परेशानी है, तो भारत जाओ।
हिंदू राइट्स एक्शन फोर्स ने लंदन की अदालत में एक मुकदमा दायर कर हिंदुओं की दुर्दशा के लिए ब्रिटेन को दोषी ठहराया है और इसके लिए 40 खरब डॉलर के मुआवजे का दावा किया है। 25 दिसंबर को जब इसी मुद्दे पर हिंदुओं ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन की घोषणा की तो मलेशियाई सरकार ने उसे अवैध क़रार दिया और प्रधानमंत्री अहमद बदावी ने हिंदुओं के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने की धमकी दी। प्रदर्शन के शांतिपूर्ण चरित्र पर ज़ोर देने के लिए प्रदर्शनकारियों ने गांधी जी की तस्वीरें ले रखी थीं लेकिन वहां भीड़ पर आंसू गैस छोड़े गए और लाठियां भांजी गईं। लगभग 500 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 300 लोगों का आज तक पता नहीं है।
मलेशिया में 60% जनसंख्या मुसलमानों की है और 24% चीन मूल के लोग हैं। भारतीयों की संख्या 8% है और उनकी स्थिति तीसरे दर्जे के नागरिक की हो गई है। सरकार दिखाने भर को भी सही, हिंदुओं के संरक्षण की बात नहीं कह रही। यानी साफ है कि हिंदुओं के पास केवल तीन विकल्प हैं, या तो वे पीढ़ियों से अपने पुरखों की जमी-जमाई जड़ छोड़ कर भारत में शरणार्थी हो जाएं, या मलेशियाई बहुसंख्यक मुसलमानों के जाल में फंस कर इस्लाम ग्रहण कर लें या फिर श्रीलंका के तमिलों की तरह सशस्त्र आतंकवाद का रास्ता अपनाएं। मलेशियाई हिंदू चाहे जो भी रास्ता अपनाएं, भारत उनके प्रति अपनी नैतिक और सांस्कृतिक ज़िम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकता।
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4 टिप्पणियां:
इस दमन चक्र का प्रतिकार तो होना ही चाहिये ।
प्रतिवाद
कितनी बड़ी विसंगति है। कानूनी तौर पर गलत होने के बाद भी कोई भी विदेशी भारत में सुरक्षित रहता है। उसके हितों की चिंता सरकार को सताने लगती है कि भारत की साख पर कहीं बट्टा न लग जाए। लेकिन, मलेशिया और दूसरे कई देशों में कई पीढ़ी से रह रहे भारतीयों के लिए सरकार दुनिया के मंच पर अपनी बात तक नहीं उठा पाती। दुर्भाग्य है हम ऐसी नकारा सरकारों के साथ जिंदा हैं।
मुस्लमानो पर दुनिया में कहीं भी होते अत्याचारों पर भारत सरकार अपना देशहित तक न्योछावर करती रही है. अराफात जैसे आतंकवादी को गले लगाती रही है, जबकी भारत का हित इजराइल से सम्बन्ध रखने में ज्यादा है. आज जब हिन्दु और मूल भारतीयों को समर्थन की जरूरत है भारत को आगे आना चाहिए.
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