शनिवार, 5 जनवरी 2008

आतंकवाद के खिलाफ नपुंसक लड़ाई में दागा गया एक और चूका हुआ कारतूस

दिल्ली के उपराज्यपाल चाहते हैं कि दिल्ली की सड़क पर घूमने वाले हर इंसान की जेब में उसका परिचय पत्र हो। आतंकवाद के खिलाफ सरकार की लड़ाई का ये एक नया अस्त्र है। पहली नज़र में यह सही भी लगता है। पश्चिम के कई सभ्य और सुरक्षित देशों में ऐसे कानून पहले से ही हैं, तो देश की राजधानी में अगर ऐसा कानून बना है तो अच्छा ही है। लेकिन दिल्ली की सरकार ने इस फैसले के लिए जो कारण बताया है, वह बहुत ही हास्यास्पद है।

दिल्ली में घूमने वाले हर आदमी के पास उसका परिचय पत्र हो, इसका एकमात्र उद्देश्य तो यही लगता है कि बिना पासपोर्ट, वीज़ा के देश के भीतर घुसे किसी भी व्यक्ति को दबोचा जा सके। और इस तरह आने वाले वो आतंकवादी होते हैं, जो पाकिस्तान या बंगलादेश से प्रशिक्षण लेकर चोरी छिपे सीमा पार करते हैं। लेकिन आप सोचिए, किसी भी आतंकवादी हमले में जो पूरा नेटवर्क लगा होता है, उसमें कितने लोग ऐसे होते हैं कि जो सीधे पाकिस्तान या बांगलादेश से आते हैं। मुंबई के 1991 के धमाकों में सज़ा पाए 100 से ज्यादा लोगों में कितने ऐसे हैं, जो जन्म से विदेशी हैं। मुंबई ट्रेन धमाकों, दिल्ली के लाजपत नगर धमाके, वाराणसी के मंदिर और अदालत में हुए धमाकों और ऐसे अनगिनत धमाकों में जो भी औने-पौने जांच हुई है उनमें कितने ऐसे लोगों शामिल पाए गए हैं, जो देश में अवैध तरीकों से बिना वीज़ा के आए हैं। संसद पर हुए हमले में क्या दिल्ली का एक प्रोफेसर आरोपी नहीं था, रामपुर में सीआरपीएफ कैंप पर हुए हमले में क्या कश्मीर के एक हवलदार (पूर्व आतंकवादी) पर शक नहीं किया जा रहा है। इनमें से किसी को भी क्या दिल्ली पुलिस परिचय पत्र नहीं होने के कारण गिरफ्तार कर सकती थी। सुरक्षा एजेंसियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती आतंकवादियों के स्लीपिंग सेल हैं, जिनके सदस्य सालों तक बिना किसी गतिविधि के कहीं शिक्षक, क्लर्क या प्रोफेशनल के तौर पर काम करते रहते हैं और सही समय पर अपनी कार्रवाई को अंजाम देते हैं। ऐसे लोगों से निपटने में ये परिचय पत्र का फंडा कितना काम आने वाला है, उपराज्यपाल ही बेहतर समझा सकते हैं।

मान लें कि दिल्ली में पाकिस्तान और बंगलादेश से अवैध तरीके से सीमा पार कर आए कुछ सौ आतंकवादी घूम भी रहे हों, तो क्या सवा करोड़ दिल्लीवासियों में से उन्हें परिचय पत्र के आधार पर ढूंढ पाना आपको संभव लगता है। फिर अगर कोई आतंकवादी संसद परिसर में प्रवेश के लिए गृह मंत्रालय का जाली पास बनवा सकता है, तो एक फर्ज़ी परिचय पत्र का जुगाड़ कर लेना उसके लिए कौन सी बड़ी बात है।

आइए अब इस फैसले का एक और पहलू देखते हैं। दिल्ली की राजधानी में रोज़ देश भर से हज़ारों लोग रोज़ी-रोटी या बेहतर जीवन स्तर की तलाश में आते हैं। इनमें से ज़्यादातर बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से होते हैं जहां शिक्षा का स्तर सबसे कम है। ये ठीक है कि मतदाता पहचान पत्र सबके पास होना चाहिए, लेकिन अगर किसी कारण से किसी का नहीं बना हो तो क्या पूरे देश में उसके लिए केवल जेल ही एक जगह है। ख़ासतौर पर तब जब खुद सरकार ने मतदान के अतिरिक्त और कहीं भी इसे अनिवार्य नहीं बनाया है। तो तय है कि ये फैसला पुलिसिया अत्याचार और भ्रष्टाचार को और खाद-पानी मुहैया कराएगा।

दरअसल उपराज्यपाल की यह युक्ति सरकार की उसी नपुंसक रणनीति का एक और अध्याय है, जो देश कई सालों से झेल रहा है। आतंकवाद की जड़ों पर प्रहार करने का साहस तो है नहीं, हर पत्ते पर पिले पड़े हैं। पूरा असम, पश्चिम बंगाल और पूर्वी बिहार बंगलादेशी घुसपैठियों के कारण बारूद के ढेर पर बैठा है, लेकिन वहां की हालत देखिए। जैसे ही कोई घुसपैठिया आता है, मंडल और प्रखंड स्तर के छुटभैये नेता पूरी ताक़त लगाकर सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें राशन कार्ड मिल जाए और मतदाता सूची में उनका नाम शामिल हो जाए। जबकि एक भारतीय नागरिक को इन्हीं दस्तावेजों के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना होता है। और यहां दिल्ली के उपराज्यपाल को परिचय पत्र चाहिए आपके भारतीय होने का।

उपराज्यपाल जी, अब तक तो देश का बच्चा-बच्चा जान गया है कि आतंकवाद की जड़ें कहां हैं,क्या आपको नहीं पता। और अगर पता है तो देश की जनता के साथ ये खेल क्यों खेल रहे हैं, अगर इन जड़ों पर प्रहार करने का साहस नहीं है तो आराम से सत्ता सुख के मज़े लीजिए, आम लोगों की ज़िंदगी को क्यों और मुश्किल बना रहे हैं।

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

नेताओं को मूर्खतापूर्ण बयान देने की आदत होती है, उन्हें यह भी नहीं पता कि जो लोग टनों से भारतीय नोट छापकर इधर भेज रहे हैं, फ़र्जी पासपोर्ट से आराम से आना-जाना कर रहे हैं, क्या वे एक सड़ा सा परिचय पत्र नकली नहीं बना सकते? लेकिन चूँकि लगना चाहिये कि नपुंसक भी कुछ कर रहा है, इसलिये ऊटपटांग बयान देते रहते हैं…

बेनामी ने कहा…

आप के विचारो से ओर सुरेश जी कि टिपण्णी से सहमत हू.

संजय शर्मा ने कहा…

ये राज्यपाल का आदेश है या आदेशपाल का ?
आदेश का असर कैसा होगा आपने अच्छा बताया है .हम कभी न कभी बिना परिचय पत्र के जरूर धरे जाएँगे. पैसे पैरवी खर्च करके ही सही वापस तो आना है . आम आदमी की कोई सुने न सुने पैसे की सब सुनते हैं . राज्यपाल की पुलिस सुनेगा [जो हमे तंग करेगा }और आतंकवादी सुनेगा जो चार -चार परिचय पत्र एक साथ लेकर चलेगा . ग़लत आदमी जल्दी फौलो करता है आदेश को . ये सही आदमी परेशान किए हुए है जनतंत्र को , धर्मनिरपेक्षता को .

hamendra ने कहा…

i am fully agree with Mr. bhuwan bhaskar. I am also write that sentance