शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

यह कमजोर याददाश्त है या छिछली समझदारी?

राहुल गांधी यूं तो 545 सांसदों में से महज एक सांसद हैं, लेकिन देश की मीडिया और यहां का प्रशासन उन्हें भावी प्रधानमंत्री के तौर पर ही देखता है। मैं भी अपवाद नहीं हूं। राहुल बाबा जब कुछ बोलते हैं या करते हैं, तो मुझे तो यही लगता है कि एक ट्रेनी प्रधानमंत्री अपनी रिपोर्ट कार्ड तैयार कर रहा है। इसलिए जब उन्होंने हाल ही में यह कहा कि उन्हें 17 साल से अपने पिता की हत्या का न्याय नहीं मिला है, तो मुझे हंसी भी आई और अफसोस भी हुआ। हंसी इसलिए आई कि एक बेटे को यही नहीं पता कि उसकी मां और बहन क्या कर रहे हैं और कह रहे हैं और अफसोस इसलिए हुआ कि ऐसे छिछले और बचकाने व्यक्तित्व को आज नहीं तो कल हमें अपने प्रधानमंत्री के रूप में देखना पड़ेगा।

राहुल से किसी स्कूली छात्रा (या शायद छात्र) ने अफजल को फांसी नहीं दिए जाने का कारण पूछा था। उस छात्रा ने भी राहुल से यह सवाल शायद इसीलिए पूछा क्योंकि उनमें उसे अपना भावी प्रधानमंत्री दिख रहा था। लेकिन राहुल बाबा को अपनी पहचान राजीव गांधी के पुत्र के तौर पर ज्यादा आकर्षक लगती है। सो उन्होंने कहा कि उन्हें उनके पिता की हत्या का न्यान 17साल में नहीं मिला। मैं तब से समझने की कोशिश कर रहा हूं कि राहुल ने किस न्याय की बात की है?

राहुल के पिता की हत्या श्रीलंका के आतंकवादी संगठन लिट्टे ने की। कानूनी तौर पर बात करें, तो तफ्तीश हुई और एक अभियुक्त नलिनि को इस हत्या के षडयंत्र में शामिल होने के लिए फांसी की सजा दी गई। उस समय इन्हीं राहुल जी की मां ने उसके लिए क्षमादान की अपील कर अपनी महानता की मुहर लगाई थी। इसके बाद बहुत दिन नहीं हुए जब उनकी बहन प्रियंका मीडिया से छिप कर नलिनि से मिलने गईं। बाद में इंडियन एक्सप्रेस में इसका खुलासा होने के बाद उन्होंने इसे मानवीय आधार पर की गई मुलाकात बताया। मां-बेटी ने नलिनि को मानवीय आधार पर सजा की अवधि पूरी होने से पहले रिहा करने की भी सार्वजनिक अपीलें कीं। और अब बेटा कह रहा है कि उसे न्याय नहीं मिला।

अब बात करें राजनीतिक पहलू की। राजीव गांधी के हत्यारे प्रभाकरन और उसके संगठन लिट्टे के प्रति द्रमुक एवं उसके नेता एम करुणानिधि की सहानुभूति और समर्थन कोई गुप्त तथ्य नहीं है। लेकिन केन्द्र सरकार बनाने के लिए राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी ने इसी द्रमुक का समर्थन लिया और आज भी यह यूपीए सरकार का घटक दल है। इतना ही नहीं, इन्हीं करुणानिधि के दबाव में सोनिया गांधी की सरकार ने दूसरे देश के आंतरिक मामलों में दखल न देने की भारत की दशकों की विदेश नीति को धता बता दिया है। और इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि विदेश नीति में यह ऐतिहासिक विसंगति भी देशहित में नहीं, बल्कि राजीव गांधी के हत्यारे लिट्टे को बचाने के लिए की गई है। श्रीलंका सरकार पर शीर्ष स्तर से यह दबाव बनाया जा रहा है कि वह लिट्टे के खिलाफ जारी अपनी निर्णायक लड़ाई में ढील दे दे। और फिर राहुल बाबा कह रहे हैं कि उन्हें अपने पिता की हत्या का न्यान नहीं मिला।

बेहतर होता कि एक स्कूली छात्रा के सामने पिता की हत्या पर न्याय न मिलने का रोना रोने की जगह अपनी मां के सामने इस बात की दुहाई देते। और इससे बेहतर होता अगर व्यक्तिगत मुद्दे छेड़ने के बजाय उस छात्रा के साथ ही पूरे देश को वह अफजल की फांसी पर उठ रहे सवाल का जवाब भी दे देते।

1 टिप्पणी:

अनुनाद सिंह ने कहा…

जब राहुल बोलते हैं तभी पता चलता है कि वे कितने लल्लू हैं। वरना भारत का मिडिया तो गदहे को भी ....