शनिवार, 25 अप्रैल 2009

गरीब की लुगाई, धर्मनिरपेक्षता बेचारी

धर्मनिरपेक्षता तो भइया, जैसे गरीब की लुगाई हो गई है। अबला पांचाली के तो पांच ही पति थे, लेकिन इस धर्मनिपेक्षता के तो पचीस खसम उसे अपनी अंकशायिनी बनाने के लिए एक-दूसरे की गर्दन उतारने को तैयार हैं। अब धर्मनिरपेक्षता कनफ्यूज हो गई है। बिचारी को समझ ही नहीं आ रहा कि किसे बलात्कारी माने और किसके गले लगे। अभी कुछ महीने पहले तक तो सब ठीक था। उसे समझा दिया गया था कि केवल जो भी हिंदुओं के पक्ष की बात करे, उसे अपनी दुश्मन मान लेना। वह भी खुश थी। केवल एक भाजपा थी, जो उसकी दुश्मन थी। बाकी लालू और मुलायम टाइप के समाजवादी, प्रकाश करात और बुद्धदेव टाइप के वामपंथी, सोनिया और अर्जुन टाइप के कांग्रेसी सब धर्मनिरपेक्ष थे। नीतीश और नवीन टाइप के लोग, वैसे तो धर्मनिरपेक्ष (अल्पसंख्यक हितों के प्रति लगातार निष्ठा जताते रहने के कारण) थे, लेकिन भाजपाइयों के साथ होने के कारण उनके सिर भी धर्मनिरपेक्षता के खून के छींटे थे। तो सीन कुछ साफ था। लेकिन ये एकाएक सब गड़बड़ हो गई है।

एक ओर कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्ष गठबंधन की अगुवा होने का दावा ठोंका, तो दूसरी ओर लालू-मुलायम-पासवान की तिकड़ी ने ऐलान कर दिया कि चुनाव के बाद जो धर्मनिरपेक्ष गठबंधन सत्ता बनाएगा, उसमें कांग्रेस शामिल ही नहीं होगी। अब धर्मनिरपेक्षता का तमगा लेने की जब ऐसी होड़ मची हो, तो हिंदू शब्द सुनते ही जिनके पूरे देह में खुजली मच जाती हो, वैसे वामपंथी भला कैसे चुप रहते। तो, हरकिशन सिंह सुरजीत के बाद जोड़तो़ड़ और अवसरवादी राजनीति के नए सरताज बनने को बेताब प्रकाश करात ने भी घोषणा कर दी कि नई धर्मनिरपेक्ष सरकार में कांग्रेस का कोई स्थान नहीं होगा। अभी धर्मनिरपेक्षता बिचारी थोड़ी सांस ले पाती, गणित बैठा पाती और लालू-मुलायम-पासवान के साथ करात की जोड़ी मिला पाती, तब तक करात जी के अनुशासित सिहापी और नंदीग्राम नरसंहार के प्रणेता बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कह दिया कि कांग्रेस के बिना तो किसी धर्मनिरपेक्ष सरकार का अस्तित्व ही नहीं हो सकता। लो, फिर वही ढाक के तीन पात। धर्मनिरपेक्षता तो है एक और एक-दूसरे पर तलवार ताने इसके दावेदारों की जमात है कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेती।

मुसलमानों पर उठने वाली उंगली के बदले हाथ काटने का ऐलान करने वाले आंध्र प्रदेश के धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस अध्यक्ष डी श्रीनिवास, भाजपा के साथ गठबंधन का कलंक धोने के लिए बात-बात में मुस्लिम हितों की सुरक्षा की कसमें खाने वाले धर्मनिरपेक्ष नीतीश कुमार, कंधमाल में स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या के बाद वनवासियों द्वारा चर्च पर किए गए हमलों से आहत धर्मनिरपेक्ष नवीन पटनायक जैसे धर्मनिरपेक्षता के स्वयंभू दावेदार अलग से। आपकी पता नहीं, पर मेरी तो पूरी सहानुभूति है इस धर्मनिरपेक्षता से। आप ही बताएं, क्या करे बिचारी धर्मनिरपेक्षता ?

2 टिप्‍पणियां:

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…

क्या करेगी भुवन bhai, धर्मनिरपेक्षता ऐसी ही लुटती रहेगी | हम आप बैठे देखते रहेंगे |

संजय भास्‍कर ने कहा…

वैसे तो धर्मनिरपेक्ष (अल्पसंख्यक हितों के प्रति लगातार निष्ठा जताते रहने के कारण) थे, लेकिन भाजपाइयों के साथ होने के कारण उनके सिर भी धर्मनिरपेक्षता के खून के छींटे थे। तो सीन कुछ साफ था। लेकिन ये एकाएक सब गड़बड़ हो गई है।

SARA MAMLA YE HAI