बुधवार, 1 जनवरी 2014

केजरीवाल साहब को समर्पित

नेता, बड़ा नेता और महान नेता – इन तीनों में क्या अंतर है? नेता वह है जो एक खास समय में एक खास मुद्दे पर एक निश्चित समाज को नेतृत्व देता है, बड़ा नेता वह है जो एक लंबे समय तक कई छोटे और बड़े मुद्दों पर कई समूहों के समाज को नेतृत्व देता है और महान नेता वह है जो अपने जीवन के बाद भी भौगोलिक सीमाओं के परे जाकर लोगों को विभिन्न समस्याओं से जूझने का समाधान, प्रेरणा देता है।

तो कोई नेता, कैसे बड़ा नेता और फिर महान नेता बन जाता है- कैसे? क्या मैकेनिज्म है इस विस्तार का? कई विचार हो सकते हैं, शोध भी हो सकता है और किताबें भी लिखी जा सकती हैं। लेकिन एकदम संक्षेप में इसका जवाब यह है कि कोई व्यक्ति अपने समाज से जितना ज्यादा जुड़ता चला जाता है, उसकी व्यापकता और प्रभाव उतना ही बढ़ता चला जाता है। लेकिन फिर इसी प्रक्रिया में उस व्यक्ति का सेल्फ डिस्ट्रक्शन मैकेनिज्म (आत्मघाती तंत्र) भी विकसित हो जाता है। व्यक्ति समाज से जुड़ता है, फिर बड़ा बन जाता है और फिर इतना बड़ा बन जाता है कि समाज से कट जाता है। फिर उसे समझ ही नहीं आता कि समाज क्या चाहता है, उससे क्या उम्मीद करता है या समाज में कौन सी धारा बह रही है। ऐसा क्यों होता है?

दरअसल व्यक्ति के समाज से जुड़ने और पहले नेता, फिर बड़ा नेता बनने के साथ ही उसके पास सत्ता और ताकत भी आते हैं। फिर उस सत्ता से लाभ उठाने की इच्छा रखने वाले उससे जुड़ते हैं। ये लोग फिर समाज और नेताजी के बीच एक बफर जोन, फिल्टर जोन बना देते। फिर नेताजी वही सुनते हैं, जो ये लोग सुनाना चाहते हैं और वही देखते हैं, जो ये लोग दिखाना चाहते हैं। नेताजी के इर्द-गिर्द इतना सघन आवरण तैयार हो जाता है कि उनकी ग्रोथ खत्म हो जाती है। फिर नेताजी, बड़े नेता नहीं बन पाते और जो बड़े नेता बन गए वे कभी महान नेता नहीं बन पाते। गांधी, मंडेला, मार्टिन लूथर जैसे महान नेताओं, मोदी, लालू और मायावती जैसे बड़े नेताओं और हजारों छोटे नेताओं की जिंदगियों में यह प्रक्रिया आराम से देखी जा सकती है।

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