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शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

बोलो बेटा क्या बनोगे ....गांधी या मुतालिक?

टाइम्स ऑफ इंडिया में दिल्ली संस्करण के मास्टहेड पर आज दो कटआउट लगे हैं, जिनका कंट्रास्ट अद्भुत है। दाईं ओर महात्मा गांधी और बाईं ओर प्रमोद मुतालिक। मुझे पूरा विश्वास है कि इस लेख को पढ़ते समय किसी के भी मन में यह सवाल नहीं कौंधा होगा कि "कौन प्रमोद मुतालिक"। क्योंकि आज की तारीख में प्रमोद मुतालिक से भी इस देश के लोग उतने ही ज्यादा परिचित हैं, जितने मोहनदास करमचंद गांधी। दरअसल भारत में यह गुंडागर्दी का इनाम है।

कॅरियर का विचार करते समय हम अक्सर मुनाफे और नुकसान का हिसाब लगाते हैं। बहुत बार हमें हिंदी अच्छी लगती है, लेकिन हम इसलिए स्नातक के लिए अंग्रेजी का चुनाव करते हैं, क्योंकि वहां कॅरियर की संभावनाएं व्यापक और बेहतर हैं। अब अगर देश के सबसे प्रभावशाली अखबार के पैनल पर छपने की मेरी इच्छा जाग जाए, तो मेरे लिए गांधी बनने का रास्ता तो हजारों मील लंबा और वर्षों की तपस्या से होकर गुजरेगा, लेकिन मुतालिक बनने का रास्ता...... बस कुछ गुंडों के साथ एक पब में घुस कर गुंडागर्दी करना। या शायद खुद पब में जाने की भी जरूरत नहीं। कुछ बेरोजगार मू्र्खों को उकसा कर मारपीट करवाइए और गांधी के बराबर खड़े हो जाइए।

कुछ मित्रों को लग सकता है कि पैनल के कटआउट को इतना बड़ा आयाम देना उचित नहीं है। लेकिन, क्योंकि मैं भी अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर एक अखबार के मास्टहेड के लिए रोज पैनल कटआउट का चुनाव करता हूं, तो हम आपस में जरूर इस बात पर विचार करते हैं कि क्या अमुक व्यक्ति को इतना बड़ा मंच देना उचित है। तो यह मानने का कोई कारण नहीं कि टाइम्स ऑफ इंडिया में इस विषय के लिए जिम्मेदार पत्रकारों ने यह विचार नहीं किया होगा। दूसरी बात, सवाल एक कटआउट का नहीं, सवाल हमारी व्यवस्थागत त्रुटि का है, जहां किसी समाज के सबसे वंचित समुदायों के लिए दशकों तक काम करने वाले को तो हम केवल तभी जान पाते हैं जब उसे कोई विदेशी पुरस्कार मिलता है, लेकिन प्रमोद मुतालिकों और राज ठाकरों को एक दिन की गुंडागर्दी से राष्ट्रीय पहचान मिल जाती है।

यह त्रुटि किसी कानून से ठीक नहीं हो सकती। इसके लिए मीडिया को ही अपने ऊपर संयम और अनुशासन लगाना होगा। लेकिन जब भूत, गड्ढे और नागों की कहानी से नंबर वन पाने की दौड़ मची हो, तो इस प्रकार का आत्मसंयम और आत्मानुशासन लागू हो पाना फिलहाल तो किसी आकाश कुसुम से कम जान नहीं पड़ता।